Monday 21 January 2013

2 जनवरी 2013 : पृथ्वी सूर्य के समीपस्थ बिंदू पर !


जनवरी 3, 2013

2 जनवरी 2013 : पृथ्वी सूर्य के समीपस्थ बिंदू पर !

 
 
 
 
 
 
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2 जनवरी 1913 की सुबह 04:37 UTC -ग्रीनिचमानक समय (भारतीय समय : 2 जनवरी 2013 सुबह के 9:57) पर पृथ्वी अपनी कक्षा मे पेरीहीलीआन(Perihelion) पर थी, यह पूरे वर्ष मे पृथ्वी की सूर्य से सबसे समीप की स्थिति थी। इस समय पृथ्वी की केन्द्र सूर्य के केन्द्र से 147,098,161 किलोमीटर था।
इसे आपने महसूस नही किया होगा, इस मौके पर कोई उत्सव नही मनाया गया, कोई आतिशबाजी नही हुयी। लेकिन घटना उसी तरह से हुयी जैसे पिछले वर्ष हुयी थी, उसके पिछले वर्ष भी हुयी थी और यह घटना पिछले 4.5 अरब वर्षो से हर वर्ष होते आयी है।
पृथ्वी की सूर्य परिक्रमा की कक्षा वृताकार न होकर दिर्घवृताकार(ellipse) है। यह तथ्य 17 वी सदी के शुरुवाती वर्षो तक ज्ञात नही था। खगोलशास्त्री जोहानस केप्लर के ग्रहीय गति के तीन नियमो के प्रकाशन के पश्चात यह जानकारी जनसामान्य को ज्ञात हुयी थी। इसके पहले सहस्त्रो वर्षो तक यही माना जाता रहा था कि सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा वृताकार कक्षा मे करतें है।
  एक दिर्घवृताकार कक्षा मे पृथ्वी कभी सूर्य के समीप होती है; कभी दूर होती है। पृथ्वी के लिये इन दोनो बिंदूओं का अंतर ज्यादा नही है, लगभग 50 लाख किलोमीटर। पृथ्वी की सूर्य से दूरी सबसे समीप स्थिती मे 1470 लाख किलोमीटर और सबसे दूरस्थ स्थिति मे 1520 लाख किलोमीटर होती है। दूरीयो मे यह अंतर केवल 3% का होता है, जोकि सामान्य आंखो के लिये एक वृत्ताकार आकृति ही है। निम्न आकृति मे एक वृत्त और पृथ्वी की कक्षा के जैसे दिर्घवृत्त को दिखाया गया है। क्या आप दोनो मे कोई अंतर देख पा रहे है ? पृथ्वी की दिर्घवृताकार कक्षा और उसी आकार का वृत्त
                  पृथ्वी की दिर्घवृताकार कक्षा और उसी आकार का वृत्त                                            
  इस चित्र मे दाये वाली आकृति दिर्घवृत्त है, दोनो मे अंतर देख पाना कठिन है ना ?
कुछ लोग सोचते है कि पृथ्वी पर मौसम परिवर्तन सूर्य से दूरी मे होने वाले परिवर्तन से होते है, लेकिन यह सच नही है। क्योंकि यह अंतर इतना कम है कि इससे मौसम मे कोई बड़ा बदलाव नही आ सकता है। यह सच है कि सूर्य से अधिकतम दूरी पर होने पर समीपस्थ दूरी कि तुलना मे पृथ्वी औसत से अल्प मात्रा मे ठंडी रहेगी लेकिन यह अंतर नगण्य होता है। पृथ्वी पर मौसम मे परिवर्तन पृथ्वी के घूर्णन के अक्ष के झुके होने से आता है। ध्यान से कि पृथ्वी सूर्य से समीप की स्थिति मे उत्तरी गोलार्ध मे कड़ाके की सर्दी है! यदि पृथ्वी की सूर्य से दूरी मे अंतर से मौसम परिवर्तन होते तो इसका ठीक उल्टा होता और दोनो गोलार्धो मे समान मौसम होते। कुछ लोग सोचते है कि
 चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा और पृथ्वी पर उसका प्रभाव
  चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा और पृथ्वी पर उसका प्रभाव
पृथ्वी की सूर्य से समीपस्थ स्थिती के समय की गणना थोड़ी जटिल है। यह स्थिती हर वर्ष एक ही दिनांक को नही होती है, यह हर वर्ष दिनांक पर होती है। 2012 मे यह 5 जनवरी को यह स्थिति थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस समय मे आनेवाले अंतर के लिये सबसे बड़ा कारक हमारा चंद्रमा है। चंद्रमा पृथ्वी के कक्षा मे परिक्रमा करते हुये एक 777,000 किमी व्यास का एक वृत्त बनाता है, तब पृथ्वी भी चंद्रमा के गुरुत्व से एक छोटा वृत्त बनाती है। इसे कुछ इस तरह से देंखे, दो बच्चे एक दूसरे का हाथ थाम एक दूसरे के आसपास घूम रहे है। एक बच्चा दूसरे से बड़ा है जिससे छोटा बच्चा बड़ा वृत्त बनायेगा, जबकि बड़ा बच्चा छोटा वृत्त बनायेगा। दोनो बच्चे एक दूसरे की परिक्रमा दोनो के मध्यबिण्दू के आसपास नही करते हुये दोनो के द्रव्यमान केंद्र के आसपास करते है। इस परिक्रमा के मध्यबिंदू को बैरीकेंद्र कहते है। पृथ्वी और चंद्रमा दोनो गुरुत्वाकर्षण से बंधे हुये है लेकिन नियम समान है। 
             
                   
पृथ्वी चंद्रमा के प्रभाव से हर महिने एक छोटा वृत्त बनाती है, जिससे पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा कक्षा भी सरल ना होकार थोड़ी डांवाडोल सी होती है। इस कारण हर वर्ष पेरीहीलीआन के समय मे कुछ घंटो का अंतर आ जाता है। खगोलशास्त्री हर वर्ष पेरीहीलीआन के समय गणना के लिये इस कारक का भी समावेश करते है।
पृथ्वी के सूर्य से होने वाली दूरी मे पृथ्वी से सूर्य के दृश्य आकार मे भी परिवर्तन देखने मिलता है। नीचे वाले चित्र को देंखे।


सूर्य के दृश्य आकार मे परिवर्तन(पृथ्वी से दूरस्थ और समीपस्थ बिंदू की तुलना मे)सूर्य के दृश्य आकार मे परिवर्तन(पृथ्वी से दूरस्थ और समीपस्थ बिंदू की तुलना मे)   
2 जनवरी 2013 से 5 जुलाई 2013 के मध्य पृथ्वी की सूर्य से दूरी बढ़ती जायेगी और 5 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से वर्ष मे सबसे ज्यादा दूरी पर होगी। उसके पश्चात यह दूरी कम होना शुरू हो जायेगी अगले छह महीनो तक और यह अंतहीन चक्र चलता रहेगा अगले 5 अरब वर्षो तक……

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