Monday 21 January 2013

समय : समय कैसे उत्पन्न होता है ?

                               

               समय : समय कैसे उत्पन्न होता है ?           

 

कार्य स्थगन समय की चोरी है।
-एडवर्ड यंग
ब्रह्माण्ड का विस्तार
ब्रह्माण्ड का विस्तार

समय कैसे उत्पन्न होता है ?

इस प्रश्न पर विचार करने से पहले कुछ मानी हुयी अवधारणाओं पर एक नजर डालते है।
  1. हम एक विस्तार करते हुये ब्रह्माण्ड मे रहते है।
  2. द्रव्यमान ग्रेविटान का उत्सर्जन करता है जो अंतराल से प्रतिक्रिया करता है।
  3. द्रव्यमान से अंतराल मे ऋणात्मक वक्रता आती है।(साधारण सापेक्षतावाद)
  4. समय ऋणात्मक रूप से वक्र अंतराल मे धीमा होता है।(साधारण सापेक्षतावाद)
  5. गति करते पिंडो मे भी समय धीमा हो जाता है।(विशेष सापेक्षतावाद)
  6. समय के धीमे होने के फलस्वरूप बलो की क्षमता कम होती है।(वैचारीक प्रयोग)
इन सभी अवधारणाओं को मिलाकर हमे समय की जो परिभाषा प्राप्त होती है, वह ब्रह्माण्ड को देखने का एक अलग दृष्टिकोण देती है।
समय गति और बल की उपस्थिती मात्र है तथा उसका निर्माण अंतराल के विस्तार से होता है।
विस्तार करते अंतराल के प्रभाव से पदार्थ से उत्सर्जित ग्रेविटान अंतराल से प्रक्रिया करते हुये उसके विस्तार को धीमा करते है।
  1. अंतराल का धीमा विस्तार अंतराल मे ऋणात्मक वक्रता उत्पन्न करता है।
  2. अंतराल के विस्तार के धीमा होने से गति कम होती है और बल कमजोर होते है, इसे ही गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से समय के धीमे होने के रूप मे देखा जाता है।
  3. किसी द्रव्यमान(पिंड) को विस्तार करते अंतराल द्वारा प्रदान की गयी ऊर्जा(द्रव्यमान तथा गति) स्थिर अर्थात mc2 के तुल्य होती है। इसीलिये जब किसी पिंड की गति तेज होती है, परमाणु के स्तर पर गति कम होती है और उसी अनुपात मे अन्य बल कमजोर होते है, इसे ही गति करते पिंडो मे समय के धीमे होने के रूप मे देखा जाता है।

गति तथा ऊर्जा

ऊर्जा यह गति और बलों को मापने का पैमाना है। ऊर्जा, यह समय का एक दूसरा पहलू भी है और यह भी अंतराल के विस्तार से उत्पन्न है। ऊर्जा के मापन मे किसी पिंड की गति तथा उस पिंड के अंतर्निहित बलो का समावेश होता है। वेग यह गति के मापन का गुणात्मक परिमाण (पैमाना) है। वेग, किसी पिंड की गति को अन्य आधारभूत गति जैसे प्रकाशगति की तुलना मे धीमा या तेज के रूप मे दर्शाता है। जबकि ऊर्जा गति के अतिरिक्त द्रव्यमान के अंतर्गत सभी बलों का समावेश करती है।
समय संभवत एक ऐसी आकस्मिक अवधारणा है, जो गति और बलो की उपस्थिति से निर्मित होती है। यहाँ पर हम प्रस्तावित कर रहे हैं कि गति तथा बल अंतराल के विस्तार से निर्मित हैं। किसी विशाल द्रव्यमान जैसे पृथ्वी तथा सूर्य के समीप, अंतराल के धीमे विस्तार को समय के धीमे विस्तार के रूप मे देखा जा सकता है, यह समय को ब्रह्माण्ड के विस्तार से जोड़ता है। गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या किसी पदार्थ के प्रचंड गति से प्ररिक्रमा करते अरबो कणो द्वारा तेज से धीमे समय की ओर जाने की प्रवृत्ति के रूप मे की जा सकती है। इससे इस तथ्य की भी व्याख्या होती है कि क्यों गुरुत्व हमेशा आकर्षित करता है। समय को समझने की इस नयी पद्धति से अनंत गुरुत्व या श्याम विवर के अंदर सिंगुलरैटी की आवश्यकता नही रह जाती है। इससे यह भी पता चलता है कि भारी द्रव्यमान के गुरुत्व के अतिरिक्त पिंडो की गति से भी अंतराल मे वक्रता संभव है, इसी कारण गति से पिंड की लंबाई मे कमी भी आती है। इसी से पता चलता है कि क्यों गति के प्रभाव से या गुरुत्व के प्रभाव से समय धीमा पड़ता है। यह अवधारणा दर्शाती है कि जुड़वा पैराडाक्स(Twin paradox) संभव नही है।
समय को समझने की यह पद्धति जिसमे उसे “अंतराल के विस्तार(Expansion of Space)” के साथ जोड़ा गया है को संभवतः प्रमाणित किया जा चूका है। हम जानते है कि अंतराल के विस्तार की गति मे त्वरण(accleration) आ रहा है। यदि समय अंतराल के विस्तार से संबधित है तथा हमारा समय धीमा हो रहा है तब जब भी हम किसी दूरस्थ सुपरनोवा (जहां पर समय गति अधिक थी) से उत्सर्जित प्रकाश का मापन करेंगे; हम वास्तविकता मे अपने धीमे समय मे उसकी आवृत्ती मे आये अंतर का मापन करेंगे। इससे ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति मे त्वरण का भ्रम उत्पन्न होगा। इसी तरह से पायोनीयर असंगति (pioneer anomaly ) की व्याख्या भी पृथ्वी से उत्सर्जित संकेतो द्वारा पायोनियर तक पहुंच कर वापिस लौटने के मध्य धीमे हुये समय से संभव है। यह सभी अनुमान किसी असाधारण असामान्य सिद्धांत से नही लगाये गये है, यह सापेक्षतावाद के सिद्धांत पर आधारित है। और इन्हे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है

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