Monday 21 January 2013

स्ट्रींग सिद्धांत : इतिहास और विकास

                 स्ट्रींग सिद्धांत : इतिहास और विकास


स्ट्रींग सिद्धांत जो कि भौतिकी के सभी बलों और कणो के व्यवहार को एकीकृत करने का दावा करता है, संयोगवश खोजा गया था। 1970 मे कुछ वैज्ञानिक एक ऐसे मूलभूत क्वांटम स्ट्रींग की संकल्पना पर कार्य कर रहे थे जिसका त्रिआयामी विस्तार सीमीत हो और उसकी ज्यादा छोटे घटको द्वारा व्याख्या संभव ना हो। यह अध्ययन मूलभूत बलों के एकीकरण से संबधित नही था, यह भौतिकीय संदर्भो मे नयी गणितीय चुनौती मात्र था।
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कण
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कण
पारंपरिक रूप से ऐसी स्ट्रींग की व्याख्या एक रेखा (सरल या वक्र)  द्वारा अंतराल(Space) मे किसी समय पर उसकी स्थिति से की जा सकती है। यह स्ट्रींग किसी वलय के जैसे बंद या दो अंत बिन्दुओं के साथ खूली हो सकती है।
जैसे किसी कण के अंतर्भूत द्रव्यमान(mass) होता है, उसी तरह से स्ट्रींग के अंतर्भूत तनाव(Tension) होगा। जिस तरह से एक कण विशेष सापेक्षतावाद(Special Relativity) के नियमो से बंधा होता है उसी तरह से यह स्ट्रींग भी विशेष सापेक्षतावाद के नियमो से बंधी होगी। अंतत: हमे कणो की क्वांटम यांत्रिकी के तुल्य स्ट्रींग के लिये क्वांटम यांत्रिकी के नियम बनाने होंगे।

किसी स्ट्रींग मे अंतर्भूत तनाव की उपस्थिति का अर्थ है कि स्ट्रींग सिद्धांत मे स्वाभाविक रूप से द्रव्यमान का माप है, जो कि द्रव्यमान के आयामो के लिए आधारभूत कारक है। द्रव्यमान की उपस्थिति एक बिंदु पर ना हो कर एक रेखा मे है। इससे ऊर्जा के माप मे एक तंतुमय प्रभाव उत्पन्न होता है जोकि स्ट्रींग के दोलन के कारण होता है। एक कण बिंदु के रूप मे होता है, उसमे दोलन नही होने से द्रव्यमान स्थिर सा होता है। लेकिन स्ट्रींग के एक धागेनुमा संरचना होने से उसमे दोलन, या तरंग होती है, जिससे द्रव्यमान स्थिर नही होता है, यही दोलित द्रव्यमान उसकी ऊर्जा के माप मे एक महत्वपूर्ण तंतुमय प्रभाव उत्पन्न करता है।
बिना किसी गणना के साधारण अनुभव से कोई भी अनुमान लगा सकता है कि किसी क्वांटम स्ट्रींग(धागे) मे असंख्य भिन्न भिन्न दोलन विधियाँ हो सकती है, किसी संगीत उपकरण के तार की तरह। यह सभी दोलन विधियाँ उस स्ट्रींग के आसपास अपनी विशिष्ट दोलन आवृत्ती के अनुसार एक विशिष्ट द्रव्यमान का प्रभाव उत्पन्न करेंगी। इस प्रभाव के कारण एक ही स्ट्रींग अलग अलग आवृत्ती पर दोलन करने पर अलग अलग द्रव्यमान वाले कण की तरह व्यवहार करेगा। यह प्रभाव क्वांटम भौतिकी के कणो के चिड़ीयाघर मे इतने सारे कणो की व्याख्या करता है, ये सभी कण एक ही तरह की स्ट्रींग के ही भिन्न रूप है, अर्थात वे सभी एक ही तरह की स्ट्रींग से निर्मित है, केवल स्ट्रींग द्वारा भिन्न भिन्न आवृती पर दोलन के फलस्वरूप मे भिन्न भिन्न द्रव्यमान और ऊर्जा वाले कण की तरह व्यवहार कर रहे है।
यह व्याख्या कितनी आसान लगती है, सब कुछ कितना सरल है लेकिन इस व्याख्या ने कई नये अप्रत्याशित परिणाम सामने लाये। किसी स्ट्रींग को एक असंख्य बिंदु के समूह के रूप मे देखा जा सकता है जो एक अखण्ड धागे के रूप मे बंधे रहते है। इससे अनंत ’डीग्री आफ फ़्रीडम’ का जन्म होता है। असंख्य या अनंत हमेशा अप्रत्याशित, अनेपक्षित परिणाम देती है और किसी भी सिद्धांत मे इसकी उपस्थिति असुरक्षित होती है।
सापेक्षवादी स्ट्रींग का गणित पारंपरिक स्तर पर सीधा और सरल है ,लेकिन इसे क्वांटम स्तर पर ले जाने पर वैज्ञानिको ने पाया कि इस सिद्धांत के लिये काल-अंतराल(Space-Time) के कुल आयामो की संख्या विलक्षण रूप से 26 होना चाहीये। इसलीये क्वांटम स्ट्रींग का अस्तित्व 25 आयाम वाले अंतराल(3 की बजाय) तथा 1 समय आयाम मे हो सकता है। यह 26 आयामो की संख्या एक गणितीय तथ्य है, इसे किसी प्रयोग द्वारा निर्धारीत नही किया गया है। इस सिद्धांत की खोज का सारा उत्साह आयामो की संख्या के लिये 26 अंक के बेहुदा, बेतुके अनुमान से जाता रहा।
इस सिद्धांत द्वारा 26 आयामो के अनुमान के पश्चात इस सिद्धांत का एक और बेतुका गुण पाया गया कि यह सिद्धांत एक ऐसे कण के अस्तित्व को प्रस्तावित करता था ,जिसका द्रव्यमान काल्पनिक होना चाहिये। (काल्पनीक संख्या imaginary number : -1 के वर्गमूल के गुणांक वाली संख्या।) इस कण को टेक्यान(Tachyon) नाम दिया गया। इस कण के विचित्र गुणधर्म है, इसकी गति प्रकाशगति से प्रारंभ होती है, अन्य कणो के विपरीत इसकी ऊर्जा मे कमी के साथ इसकी गति मे वृद्धी होती है, जिससे यह प्रकाशगति से तेज होते जाता है।
इस सिद्धांत के राह मे रोड़े अभी दूर नही हुये थे कि इस सिद्धांत ने एक नया आश्चर्यजनक परिणाम दिया। टेक्यान के पश्चात, दोलन करती हुयी स्ट्रींग के आवृत्ती-वर्णक्रम(Frquency Spectrum) मे अगला कण स्पिन-2 का था, जिसका द्रव्यमान लुप्त होता था। एक द्रव्यमान रहित कण(0 द्रव्यमान) का कण , अत्याधिक दूरी तक बल का वहन कर सकता है। क्वांटम सिद्धांत मे प्रकृति के सभी मूलभूत बलो की सफल व्याख्या के लिए एक ऐसे ही कण की कमी थी जो कि लंबी दूरी तक बल का वहन कर सके अर्थात ग्रेवीटान। हम जानते है कि इसके पहले क्वांटम सिद्धांत की तकनिकी समस्याओं के कारण, ग्रेवीटान के क्वांटम सिद्धांत के साथ एकीकरण के सभी प्रयास असफल रहे थे। स्ट्रींग सिद्धांत ने मूलभूत बलो के एकीकरण की राह मे सबसे बड़ा रोड़ा दूर कर दीया था।
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो का बिखरना
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो का बिखरना
यह एक क्रांतिकारी खोज थी जिसने स्ट्रींग सिद्धांत को महत्वपूर्ण सिद्धांत बनाया। स्ट्रींग एक लंबाई मे होती है और बिंदु के जैसे नही होती है, इससे क्वांटम ग्रेवीटान सिद्धांत की सारी असंगतताये दूर हो जाती है। लेकिन स्ट्रींग सिद्धांत मे कोई भी प्रक्रिया शून्य दूरी पर नही होती है। क्वांटम सिद्धांत मे किसी बिंदू कण के दो बिंदुकणो के बिखराव/टकराव के लिये एक निश्चित बिंदु (सींगुलरैटी) की आवश्यकता होती है। नीचे चित्र देंखे। कणो के बिखरने के इस बिंदु का क्षेत्रफल शून्य होता है और यह शून्य समीकरणो मे असंगतता उत्पन्न करता है। सरल शब्दो मे क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत मे शून्य दूरी पर ग्रेवीटान समीकरणो मे ∞ उत्पन्न करता था। इस असंगतता का कोई हल नही पाया गया था। स्ट्रींग सिद्धांत मे यह प्रक्रिया , एक बिंदु पर नही ,एक विश्व प्रतल मे होती है और सुस्पष्ट होती है। इस साधारण से तथ्य ने क्वांटम गुरुत्वाकर्षण को असंगत बनाने वाली ग्रेवीटान के बिखरने/टकराने की प्रक्रिया से सींगुलरैटी को हटा दिया था। इस महत्वपूर्ण व्याख्या ने 26 आयामो तथा टेक्यान जैसे बेतुके कण के अनुमानो के बावजूद इस सिद्धांत को गुरुत्वाकर्षण के अन्य बलो के साथ एकीकरण के सिद्धांत के लिये सबसे प्रभावी उम्मीदवार माना जाने लगा।
अगले भाग मे कितने स्ट्रींग सिद्धांत ?

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