पंख और हथौड़ा मे से पहले ज़मीन पर कौन पहुँचेगा ?
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=4mTsrRZEMwA
यदि आप एक हथौड़े और एक पंख को कुछ ऊंचाई से एक साथ छोड़े तो सबसे पहले ज़मीन पर कौन पहुंचेगा ? पृथ्वी पर निश्चय ही हथौड़ा पहुंचेगा लेकिन पंख पर वायु के अधिक प्रतिरोध के कारण। चंद्रमा के जैसी वायुरहित स्थिति मे दोनो एक साथ जमीन पर पहुचेंगे। गैलीलीयो के पूर्व वैज्ञानिक इस प्रयोग के परिणामो पर चकित थे, उन्होने पाया था कि वायु के प्रतिरोध की अनुपस्थिति मे सभी पिंड एक ही गति से नीचे गिरेंगे। गैलीलीयो ने भिन्न द्रव्यमान के धातु के गोलो को ऊंचाई से गिरा कर यह प्रयोग किया था और पाया था कि वे समान गति से गिरते है। लोककथाओं के अनुसार गैलीलीयो ने यह प्रयोग पीसा की झुकी मीनार से किया था लेकिन इस कथा की प्रामाणिकता पर संदेह है।इस तरह के प्रयोग के लिए सर्वोत्तम स्थान चंद्रमा है ,जहां पर वायु प्रतिरोध नही है। 1971 मे अपोलो 15 के अंतरिक्ष यात्री डेवीड स्काट ने एक हथौड़ा और पंख चंद्रमा की सतह पर कुछ ऊंचाई से छोड़ा था, यह विडीयो उसी प्रयोग का है। गैलीलीयो और आइंस्टाइन के जैसे वैज्ञानिको के अनुमान के अनुसार दोनो पंख और हथौड़ा चंद्रमा की सतह पर एक साथ पहुंचे थे। इस प्रयोग ने सिद्ध किया था कि समानता सिद्धांत(equivalence principle) के अनुसार गुरुत्वाकर्षण द्वारा उत्पन्न त्वरण पिंड के द्रव्यमान, घनत्व, संरचना, रंग आकार या किसी अन्य गुण पर निर्भर नही है। समानता सिद्धांत(equivalence principle) आधुनिक भौतिकी मे इतना महत्वपूर्ण है कि इस पर वर्तमान मे भी बहस और प्रयोग होते हैं।
अपोलो अभियान
In चन्द्र अभियान on मार्च 9, 2007 at 2:35 अपराह्नअपोलो कार्यक्रम यह संयुक्त राज्य अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मानव उड़ानो की एक श्रंखला थ। इस मे सैटर्न राकेट और अपोलो यानो का प्रयोग किया गया था। यह श्रंखला उड़ान १९६१-१९७४ के मध्य मे हुयी थी। यह श्रंखला अमरीकी राष्ट्रपति जान एफ केनेडी के १९६० के दशक मे चन्द्रमा पर मानव के सपने को समर्पित थी। यह सपना १९६९ मे अपोलो ११ की उड़ान ने पूरा किया था।
यह अभियान १९७० के दशक के शुरुवाती वर्षो मे भी चलता रहा, इस कार्यक्रम मे चन्द्रमा पर छः मानव अवतरणो के साथ चन्द्रमा का वैज्ञानिक अध्यन कार्य किया गया। इस कार्यक्रम के बाद आज २००७ तक पृथ्वी की निचली कक्षा के बाहर कोई मानव अभियान नही संचालित किया गया है। बाद के स्कायलैब कार्यक्रम और अमरीकी सोवियत संयुक्त कार्यक्रम अपोलो-सोयुज जांच कार्यक्रम जिन्होने अपोलो कार्यक्रम के उपकरणो का प्रयोग किया था, इसी अपोलो कार्यक्रम का भाग माना जाता है।
बहुत सारी सफलताओ के बावजूद इस कार्यक्रम को दो बड़ी असफलताओ को झेलना पड़ा। इसमे से पहली असफलता अपोलो १ की प्रक्षेपण स्थल पर लगी आग थी जिसमे विर्गील ग्रीसम, एड व्हाईट और रोजर कैफी शहीद हो गये थे। इस अभियान का नाम AS२०४ था लेकिन बाद मे शहीदो की विधवाओं के आग्रह पर अपोलो १ कर दिया गया था। दूसरी असफलता अपोलो १३ मे हुआ भीषण विस्फोट था लेकिन इसमे तीनो यात्रीयों को सकुशल बचा लीया गया था।
इस अभियान का नाम सूर्य के ग्रीक देवता अपोलो को समर्पित था।
पृष्ठभूमी
अपोलो अभियान का प्रारंभ आइजनहावर के राष्ट्रपतित्व काल के दौरान १९६० के दशक की शुरूवात मे हुआ था। यह मर्क्युरी अभियान का अगला चरण था। मर्क्युरी अभियान मे एक ही अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की निचली कक्षा मे सीमीत परिक्रमा कर सकता था, जबकि इस अभियान का उद्देश्य तीन अंतरिक्षयात्री द्वारा पृथ्वी की वृत्तीय कक्षा मे परिक्रमा और संभव होने पर चन्द्रमा पर अवतरण था।
नवंबर १९६० मे जान एफ केनेडी ने एक चुनाव प्रचार सभा मे सोवियत संघ को पछाड़ कर अंतरिक्ष मे अमरीकी प्रभूता साबित करने का वादा किया था। अंतरिक्ष प्रभूता तो राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न था लेकिन इसके मूल मे प्रक्षेपास्त्रो की दौड़ मे अमरीका के पिछे रहना था। केनेडी ने अमरीकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी।
१२ अप्रैल १९६१ मे सोवियत अंतरिक्ष यात्री युरी गागरीन अंतरिक्ष मे जाने वाले प्रथम मानव बने; इसने अमरीका के मन मे अंतरिक्ष की होड़ मे पिछे रहने के डर को और बड़ा दिया। इस उड़ान के दूसरे ही दिन अमरीकी संसद की विज्ञान और अंतरिक्ष सभा की बैठक बुलायी गयी। इस सभा मे अमरीका के सोवियत से आगे बड़ने की योजनाओ पर विचार हुआ। सरकार पर अमरीकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को तेजी से आगे बडाने के लिये दबाव डाला गया।
२५ मई १९६१ को केनेडी ने अपोलो कार्यक्रम की घोषणा की। उन्होने १९६० के दशक के अंत से पहले चन्द्रमा पर मानव को भेजने की घोषणा की।
अभियान की शुरूवात
केनेडी ने एक लक्ष्ये दे दिया था, लेकिन इस मे मानव जिवन, धन, तकनिक की कमी और अंतरिक्ष क्षमता की कमी का एक बड़ा भारी खतरा था। इस अभियान के लिये निम्नलिखीत पर्याय थे
१. सीधी उडा़न : एक अंतरिक्षयान एक इकाई के रूप मे चन्द्रमा तक सीधी उड़ान भरेगा, उतरेगा और वापिस आयेगा। इसके लिये काफी शक्तिशाली राकेट चाहीये था जिसे नोवा राकेट का नाम दिया गया था।
२.पृथ्वी परिक्रमा केंद्रीत उडा़न: इस पर्याय मे दो सैटर्न ५ राकेट छोडे़ जाने थे, पहला राकेट अंतरिक्षयान को पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ने के बाद अलग हो जाता जबकि दूसरा राकेट उसे चन्द्रमा तक ले जाता।
३.चन्द्र सतह केंद्रीत उडा़न: इस
पर्याय मे दो अंतरिक्ष यान एक के बाद एक छोडे़ जाते। पहला स्वचालित
अंतरिक्षयान इंधन को लेकर चन्द्रमा पर अवतरण करता, जबकि दूसरा मानव
अंतरिक्ष यान उसके बाद चन्द्रमा पर पहुंचता। इसके बाद स्वचालित अंतरिक्ष
यान से इंधन मानव अंतरिक्षयान मे भरा जाता। यह मानव अंतरिक्षयान पृथ्वी पर
वापिस आता।
चन्द्रमा कक्षा केंद्रीत अभियान :
इस पर्याय मे एक सैटर्न राकेट द्वारा विभीन्न चरणो वाले अंतरिक्ष यान को
प्रक्षेपित करना था। एक नियंत्रण यान चन्द्रमा की परिक्रमा करते रहता, जबकि
चन्द्रयान चन्द्रमा पर उतरकर वापिस नियंत्रण यान से जुड़ जाता। अन्य
पर्यायो की तुलना मे इस पर्याय मे चन्द्रयान काफी छोटा था जिससे चन्द्रमा
की सतह से काफी कम द्रव्यमान वाले यान को प्रक्षेपित करना था।
१९६१ मे नासा के अधिकतर विज्ञानी सीधी उड़ान के पक्ष मे थे। अधिकतर
अभियंताओ को डर था कि बाकि पर्यायो की कभी जांच नही की गयी है और अंतरिक्ष
मे यानो का विच्छेदीत होना और पुनः जुड़ना एक खतरनाक और मुश्किल कार्य हो
सकता है। लेकिन कुछ विज्ञानी जिसमे जान होबाल्ट प्रमुख थे, चन्द्रमा
परिक्रमा केंद्रीत उडानो की महत्वपूर्ण भार मे कमी वाली योजना से प्रभावित
थे। होबाल्ट ने सीधे सीधे इस कार्यक्रम के निदेशक राबर्ट सीमंस को एक पत्र
लिखा। उन्होने इस पर्याय पर पूरा विचार करने का आश्वासन दिया।इन सभी पर्यायो पर विचार करने के लिये गठित गोलोवीन समिती ने होबाल्ट के प्रयासो को सम्मान देते हुये पृथ्वी परिक्रमा केंद्रीत पर्याय और चन्द्रमा केन्द्रीत पर्याय दोनो के मिश्रीण वाली योजना की सीफारीश की। ११ जुलाई १९६२ को इसकी विधीवत घोषणा कर दी गयी।
अंतरिक्ष यान
अपोलो अंतरिक्ष यान के तीन मुख्य हिस्से और दो अलग से छोटे हिस्से थे। नियंत्रण कक्ष(नियंत्रण यान) वह हिस्सा था जिसमे अंतरिक्ष यात्री अपना अधिकतर समय (प्रक्षेपण और अवतरण के समय भी)बीताने वाले थे। पृथ्वी पर सिर्फ यही हिस्सा लौटकर आने वाला था। सेवा कक्ष मे अंतरिक्षयात्रीयो के उपकरण, आक्सीजन टैंक और चन्द्रमा तक ले जाने और वापिस लाने वाला इंजन था। नियंत्रण और सेवा कक्ष को मिलाकर नियंत्रण यान बनता था।
चन्द्रयान चन्द्रमा पर अवतरण करने वाला यान था। इसमे अवरोह और आरोह चरण के इंजन लगे हुये थे जो कि चन्द्रमा पर उतरने और वापिस मुख्य नियंत्रण यान से जुड़ने के लिये काम मे आने वाले थे। ये दोनो इंजन भी नियंत्रण यान से जुड़ने के बाद मुख्य यान से अलग हो जाने वाले थे। इस योजना मे चन्द्रयान का अधिकतर हिस्सा रास्ते मे ही छोड़ दिया जानेवाला था, इसलिये उसे एकदम हल्का बनाया जा सकता था और इस योजना मे एक ही सैटर्न ५ राकेट से काम चल सकता था।
चन्द्रमा पर अवतरण के अभ्यास के लिये चन्द्रमा अवतरण जांच वाहन(Lunar Landing Research Vehicle-LLRV) बनाया गया। यह एक उड़ान वाहन था जिसमे चन्द्रमा की कम गुरुत्व का आभास देने के लिये एक जेट इंजन लगाया गया था। बाद मे LLRV को LLTV(चन्द्रमा अवतरण प्रशिक्षण वाहन -Lunar Landing Training Vehicle) से बदल दिया गया।
अन्य दो महत्वपूर्ण थे LET और SLA। LET (aunch Escape Tower) यह नियंत्रण यान को प्रक्षेपण यान से अलग ले जाने के लिये प्रयोग मे लाया जाना था, वहीं SLA(SpaceCraft Lunar Module Adapter) यह अंतरिक्षयान को प्रक्षेपण यान से जोड़ने के लिये प्रयोग मे लाया जाना था।
इस अभियान मे सैटर्न 1B, सैटर्न ५ यह राकेट प्रयोग मे लाये जाने थे।
अभियान
अभियान के प्रकार
इस अभियान मे निम्नलिखीत तरह के अभियान प्रस्तावित थे।
- A मानव रहित नियंत्रण यान जांच
- B मानव रहित चन्द्रयान जांच
- C मानव सहित नियंत्रण यान पृथ्वी की निचली कक्षा मे।
- D मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान पृथ्वी की निचली कक्षा मे।
- E मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान पृथ्वी की दिर्घवृत्ताकार कक्षा मे, अधिकतम दूरी ७४०० किमी।
- F मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान चन्द्रम की कक्षा मे।
- G चन्द्रमा पर अवतरण
- H चन्द्रमा की सतह पर कुछ समय के लिये रूकना
- I चन्द्रमा की सतह पर उपकरणो से वैज्ञानिक प्रयोग करना
- J चन्द्रमा की सतह पर लंबे समय के लिये रूकना
लेकिन १९६८ की गर्मियो तक यह निश्चित हो गया था कि अपोलो ८ की उड़ान के लिये चन्द्रयान तैयार नही हो पायेगा। नासा ने तय किया कि अपोलो ८ को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिये भेजने की बजाये चन्द्रमा की परिक्रमा के लिये भेजा जाये। यह भी माना जाता है कि यह बदलाव सोवियत संघ के चन्द्रमा परिक्रमा के अभियान झोंड(Zond) के डर से किया गया था। अमरिकी विज्ञानी इस बार सोवियत संघ से हर हाल मे आगे रहना चाहते थे।
चन्द्रमा से लाये गये नमुने
अपोलो अभियान ने कुल मिलाकर चन्द्रमा से ३८१.७ किग्रा पत्थर और अन्य पदार्थो के नमुने एकत्र कर के लाये थे। इसका अधिकांश भाग ह्युस्टन की चन्द्रप्रयोगशाला(Lunar Receiving Laboratory ) मे रखा है।
रेडीयोमेट्रीक डेटींग प्रणाली जांच से यह पाया गया है कि चन्द्रमा पर की चटटानो की उम्र पृथ्वी पर की चटटानो से कहीं ज्यादा है। उनकी उम्र ३.२ अरब वर्ष से लेकर ४.६ अरब वर्ष तक है। ये नमुने सौरमंडल निर्माण की प्राथमिक अवस्था के समय के है। इस अभियान मे पायी गयी एक महत्वपूर्ण चट्टान जीनेसीस है। यह चट्टान एक विशेष खनीज अनोर्थोसिटे की बनी है।
अपोलो एप्पलीकेशनस
अपोलो कार्यक्रम के बाद के कुछ अभियानो को अपोलो एप्पलीकेशनस नाम दिया गया था, इसमे पृथ्वी की परिक्रमा की ३० उड़ानो की योजना थी। इन अभियानो मे चन्द्रयान की जगह वैज्ञानीक उपकरणो को लेजाकर अंतरिक्ष मे प्रयोग किये जाने थे।
एक योजना के अनुसार सैटर्न १बी द्वारा नियंत्रण यान को प्रक्षेपित कर पृथ्वी की निचली कक्षा मे ४५ दिन तक रहना था। कुछ अभियानो मे दो नियंत्रण यान का अंतरिक्ष मे जुड़ना और रसद सामग्री की आपूर्ती की योजना थी। ध्रुविय कक्षा के लिये सैटर्न ५ की उड़ान जरूरी थी, लेकिन मानव उड़ानो द्वारा ध्रुविय कक्षा की उड़ान इसके पहले नही हुयी थी। कुछ उड़ान भू स्थिर कक्षा की भी तय की गयी थी।
इन सभी योजनाओ मे से सिर्फ २ को ही पुरा किया जा सका। इसमे से प्रथम स्कायलैब अंतरिक्ष केन्द्र था जो मई १९७३ से फरवरी १९७४ तक कक्षा मे रहा दूसरा अपोलो-सोयुज जांच अभियान था जो जुलाई अ९७५ मे हुआ था। स्कायलैब का इंधन कक्ष सैटर्न १बी के दूसरे चरण से बनाया गया था और इस यान पर अपोलो की दूरबीन लगी हुयी थी जोकि चन्द्रयान पर आधारीत थी। इस यान के यात्री सैटर्न १बी राकेट से नियंत्रण यान द्वारा स्कायलैब यान तक पहुंचाये गये थे, जबकि स्कायलैब यान सैटर्न ५ राकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। स्कायलैब से अंतिम यात्री दल ८ फरवरी १९७४ को विदा हुआ था। यह यान अपनी वापिसी की निर्धारीत तिथी से पहले ही १९७९ मे वापिस आ गया था।
अपोलो-सोयुज जांच अभियान यह अमरीका और सोवियत संघ का संयुक्त अभियान था। इस अभियान मे अंतरिक्ष मे मानवरहित नियंत्रण यान और सोवियत सोयुज यान का जुड़ना था। यह अभियान १५ जुलाई १९७५ से २४ जुलाई १९७५ तक चला। सोवियत अभियान सोयुज और सेल्युट यानो के साथ चलते रहे लेकिन अमरीकी अभियान १९८१ मे छोडे़ गये एस टी एस १ यान तक बंद रहे थे।
अपोलो अभियान का अंत और उसके परिणाम
अपोलो कार्यक्रम की तीन उड़ाने अपोलो १८,१९,२० भी प्रस्तावित थी जिन्हे रद्द कर दिया गया था। नासा का बजट कम होते जा रहा था जिससे द्वितिय चरण के सैटर्न ५ राकेटो का उत्पादन रोक दिया गया था। इस अभियान को रद्द कर अंतरिक्ष शटल के निर्माण के लिये पैसा उपलब्ध कराने की योजना थी। अपोलो कार्यक्रम के यान और राकेटो के उपयोग से स्कायलैब कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। लेकिन इस कार्यक्रम के लिये एक ही सैटर्न ५ राकेट का प्रयोग हुआ, बाकि राकेट प्रदर्शनीयो मे रखे हैं।
नासा के अगली पीढी के अंतरिक्ष यान ओरीयान जो अंतरिक्ष शटल के २०१० मे रीटायर हो जाने पर उनकी जगह लेंगे, अपोलो कार्यक्रम से प्रभावित है। ओरीयान यान सोवियत सोयुज यानो की तरह जमीन से उड़ान भरकर जमीन पर वापिस आयेंगे, अपोलो के विपरीत जो समुद्र मे गीरा करते थे। अपोलो की तरह ओरीयान चन्द्र कक्षा आधारीत उड़ान भरेंगे लेकिन अपोलो के विपरीत चन्द्रयान एक दूसरे राकेट अरेस ५ से उड़ान भरेगा, अरेस ५ अंतरिक्ष शटल और अपोलो के अनुभवो से बना है। ओरीयान अलग से उड़ान भरकर चन्द्रयान से पृथ्वी की निचली कक्षा मे जुड़ेगा। अपोलो के विपरित ओरीयान चन्द्रमा की कक्षा मे मानव रहित होगा जबकि चन्द्रयान से सभी यात्री चन्द्रमा पर अवतरण करेंगे।
अपोलो अभियान पर कुल खर्च १३५ अरब डालर था(२००६ की डालर किमतो के अनुसार)(२५.४ अरब डालर १९६९ किमतो के अनुसार)। अपोलो यान के निर्माणखर्च २८ अरब डालर था जिसमे १७ अरब डालर नियंत्रण यान के लिये और ११ अरब डालर चन्द्रयान के लिये थे। सैटर्न १ब और सैटर्न ५ राकेट का निर्माण खर्च ४६ अरब डालर था। सभी खर्च २००६ की डालर किमतो के अनुसार है।
चन्द्रमा पर पहला वैज्ञानिक और अंतिम मानव : अपोलो १७
In चन्द्र अभियान on मार्च 4, 2007 at 1:34 पूर्वाह्नअपोलो १७ यह अपोलो कार्यक्रम का अंतिम और ग्यारहवां मानव अभियान था। रात मे प्रक्षेपित होने वाला यह पहला अभियान था। इस अभियान की विशेषता थी कि पहली बार कोइ वैज्ञानिक चन्द्रमा पर जा रहा था। इसके पहले सभी यात्री सेना से थे। यह एक विडंबना है या संयोग यह विज्ञानी चन्द्रमा पर जाने वाला आज की तारीख तक आखीरी मानव है।
यात्री दल
- युगीन सेरनन(Eugene Cernan): तीन अंतरिक्ष यात्रायें, कमांडर
- रोन इवांस (Ron Evans): १ अंतरिक्ष यात्रा, नियंत्रण यान चालक
- हैरीशन जैक स्क्मीट(Harrison “Jack” Schmitt) : एक अंतरिक्ष यात्रा , चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक यात्री दल
- जान यंग (John Young): कमांडर, जेमीनी ३, जेमीनी १०, अपोलो १०, अपोलो १६, STS 1, STS 9 का अनुभव
- स्टुवर्ट रूसा (Stuart Roosa): नियंत्रण यान चालक, अपोलो १४ का अनुभव
- चार्लस ड्युक (Charles Duke): चन्द्रयान चालक, अपोलो १६ का अनुभव
प्रक्षेपित द्रव्यमान : २.९२३,४०० किग्रा
कुल यान का द्रव्यमान : ४६,७०० किग्रा
नियंत्रण यान का द्रव्यमान : ३०,३२० किग्रा
चन्द्रयान का द्रव्यमान: १६,४५४ किग्रा
पृथ्वी की परिक्रमा : चन्द्रमा की ओर रवाना होने पहले २, वापिसी मे एक
चन्द्रमा की परिक्रमा : ७५
चन्द्रयान का मुख्ययान से विच्छेद : ११ दिसंबर १९७२ को १७:२०:५६ बजे
चन्द्रयान का मुख्ययान से पुनः जुड़ना : १५ दिसंबर को ०१:१०:१५ बजे
यान बाह्य गतिविधीयां
यान बाह्य गतिविधी १ : सेरनन और स्क्मिट
प्रारंभ : ११ दिसंबर १९७२ को २३:५४:४९ बजे
अंत : १२ दिसंबर को ०७:०६:४२ बजे
कुल समय : ७ घंटे, ११ मिनिट और १३ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी २ : सेरनन और स्क्मिट
प्रारंभ : १२ दिसंबर १९७२ को २३:२८:०६ बजे
अंत : १३ दिसंबर को ०७:०५:०२ बजे
कुल समय : ७ घंटे, ३६ मिनिट और ५६ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी ३ : सेरनन और स्क्मिट
प्रारंभ : १३ दिसंबर १९७२ को २२:२५:४८ बजे
अंत : १४ दिसंबर को ०५:४०:५६ बजे
कुल समय : ७ घंटे, १५ मिनिट और ०८ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी ४ : पृथ्वी की ओर वापसी की यात्रा मे इवांस
प्रारंभ : १७ दिसंबर १९७२ को २०:२७:४० बजे
अंत : १७ दिसंबर को २१:३३:३४ बजे
कुल समय : १ घंटे, ०५ मिनिट और ४४ सेकंड
चन्द्रमा पर अंतिम बार कदम रखने वाले ये दो मानव मे से एक स्कमिट, चन्द्रमा पर कदम रखने वाले पहले भूगर्भशास्त्री थे। इवांस नियंत्रण यान (अमरीका) मे चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहे थे जबकि स्कमिट और सेरनन ने रिकार्ड १०९ किग्रा नमुने जमा किये। यात्री दल ने चन्द्रमा पर लगभग ३४ किमी की यात्रा की, ये यात्रा उन्होने चन्द्रवाहन द्वारा टारस-लीट्रो घाटी मे की। उन्होने इस दौरान संतरे के रंग की मिट्टी का भी पता लगाया।
इस अभियान के उतरने की जगह मारे सेरेनेटेटीस जो कि मोन्टेस टारस के दक्षिण पश्चिम मे है। यह एक J अभियान था जिसमे चन्द्रवाहन ले जाया गया था। इस दौरान यात्रीयो ने चन्द्रमा पर तीन बार यात्राये कि जो ७.२,७.६ और ७.३ घंटो की थी और १०९ किग्रा नमुने जमा किये।
चन्द्रयान नासा के होस्टन, टेक्सास स्थित जानसन अंतरिक्ष केन्द्र मे रखा है।
इस अभियान के दौरान यात्रीयो ने पृथ्वी की ब्लू मारबल नाम से प्रसिध्द तस्वीर खींची थी।
पृथ्वी पर वापिसी के बाद यह यान सोलोमन द्वीप के पास गीरा जो कि निर्धारीत स्थल से ६४० मीटर दूर था। इसे यान को समुद्र से यु एस एस टीकोन्डरोगा जहाज ने उठाया।
इस अभियान के बाद की उड़ाने अपोलो १८,१९,२० बजट की कमी की वजह से रद्द कर दी गयी थी।
अगला लेख अपोलो श्रंखला का अंतिम लेख होगा। इस लेख को मै कुछ इस तरह से लिखने की कोशीश करुंगा कि यह प्रथम लेख का भी कार्य कर सके।
चन्द्रमा पर सबसे तेज वाहन : अपोलो १६
In चन्द्र अभियान on मार्च 3, 2007 at 1:25 पूर्वाह्नअपोलो १६ यह अपोलो कार्यक्रम का दसंवा मानव अभियान और चन्द्रमा पर अवतरण करने वाला पांचवां अभियान था।
यात्री दल
जान डब्ल्यु यंग (John W. Young) : ४ अंतरिक्ष यात्राये, कमांडर
थामस केन मैटींगली जुनियर (Thomas K. (Ken) Mattingly Jr) : १ अंतरिक्ष यात्रा, नियंत्रण यान चालक
चार्ल्स ड्युक जुनियर (Charles Duke Jr.) : १ अंतरिक्ष यात्रा चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक यात्री दल
फ्रेड हैसे (Fred Haise) : कमांडर, अपोलो १३ और स्पेशशटल एन्टरप्राईज का अनुभव
स्टुवर्ट रूसा(Stuart Roosa) : नियंत्रण यान चालक , अपोलो १४ का अनुभव
एडगर मिशेल (Edgar Mitchell): चन्द्रयान चालक,अपोलो १४ का अनुभव
अभियान के आंकडे़
प्रक्षेपित द्रव्यमान : २,९२१,००५ किग्रा
यान का द्रव्यमान : ४६,७८२ किग्रा
चन्द्रयान का द्रव्यमान : १६,४४४ किग्रा
नियंत्रण यान का द्रव्यमान: ३०,३५४ किग्रा
पृथ्वी की परिक्रमा : ३ चन्द्रमा की ओर जाने से पहले, १ आने के बाद
चन्द्रमा की परिक्रमा : ६४
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से विच्छेद: २० अप्रैल १९७२ को १८:०७:३१ बजे
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से पुनः जुड़ना: २४ अप्रैल १९७२ को ०३:३५:१८ बजे
यान बाह्य गतिविधीयां
यान बाह्य गतिविधी १: यंग और ड्युक
प्रारंभ: २१ अप्रैल १९७२ को १६:४७:२८ बजे
अंत: २१ अप्रैल को २३:५८:४० बजे
समय: ७ घंटे, ११ मिनिट और २ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी २: यंग और ड्युक
प्रारंभ: २२ अप्रैल १९७२ को १६:३३:३५ बजे
अंत: २२ अप्रैल को २३:५६:४४ बजे
समय: ७ घंटे, २३ मिनिट और ९ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी ३: यंग और ड्युक
प्रारंभ: २३ अप्रैल १९७२ को १५:२५:२८ बजे
अंत: २३ अप्रैल को २१:०५:०३ बजे
समय: ५ घंटे, ४० मिनिट और ३ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी ४: पृथ्वी की वापिसी के समय मैटींगली
प्रारंभ: २५ अप्रैल १९७२ को २०:३३:४६ बजे
अंत: २५ अप्रैल को २१:५७:२८ बजे
समय: १ घंटे, २३ मिनिट और ४२सेकंड
यान पृथ्वी पर क्रिस्मस द्वीप के पास गीरा और इसे यु एस एस टेकोन्डरोगा(USS Ticonderoga) जहाज ने उठाया।
अभियान
यह एक J अभियान था और इसमे भी एक चन्द्र वाहन ले जाया गया था। इस अभियान ने कुल ९४.७ किग्रा नमुने जमा कर पृथ्वी पर लाये गये थे।
इस अभियान मे भी अपोलो १५ की तरह पृथ्वी की ओर वापिसी की दौरान यान से बाहर आकर कैमरो से फिल्म कैसेट निकाली गयी थी। चन्द्रमा की कक्षा मे इस यान ने एक चन्द्रमा की कक्षा मे उपग्रह छोड़ा था , जिसने चन्द्रमा की ३४ दिनो तक ४२५ परिक्रमायें की। इस उपग्रह का द्र्व्यमान ३६.३ किग्रा था। इस अभियान ने चन्द्रमा के मार्ग से पृथ्वी के भी कई तस्वीरे ली थी।
चन्द्रमा पर उतरने से पहले जब चन्द्रयान(ओरीयान) मुख्य नियंत्रण यान(कैस्पर) से अलग हो चुका था, तब मुख्य नियंत्रण यान के एक इंजन मे समस्या उतपन्न हो गयी थी। चन्द्रमा पर अवतरण को रद्द करने के संकेत मील गये थे। लेकिन पाया गया कि खतरा ज्यादा बड़ा नही है और चन्द्रयान मुख्य यान से अलग हो चुका है इसलिये चन्द्रयान को चन्द्रमा पर उतरने के लिये कहा गया। लेकिन अभियान को चार दिन से एक दिन कम कर तीन दिन का कर दिया गया।
यंग और ड्युक ने चन्द्रमा पर तीन दिन बिताये और डेस्कार्टेस पठार का निरिक्षण किया जबकि मैटींगली चन्द्रमा की कक्षा मे प्रयोग करते रहे। यात्रीयो ने चन्द्रमा पर एक स्थान जिसे ज्वालामुखी के रूप मे जाना जाता था , असल मे उलका आगातो से बना पथरीला इलाका है। उन्होने इस स्थान से एक बड़ी चट्टान ( ११.७ किग्रा) ले कर आये जिसे बाद मे ‘बीग मुले‘ नाम दिया गया।
इस अभियान के दौरान उन्होने चन्द्रमा पर १८ किमी/घंटा की गति से चन्द्रवाहन को चलाया जो कि एक रिकार्ड है।
चंद्रमा पर तीन दिन: अपोलो १५
In चन्द्र अभियान on मार्च 2, 2007 at 1:56 पूर्वाह्नअपोलो १५ यह अपोलो कार्यक्रम का नौंवा मानव अभियान था और चन्द्रमा पर अवतरण करने वाला चौथा अभियान था। यह J अभीयानो मे से पहला अभियान था जिनमे चन्द्रमा पर ज्यादा समय तक ठहरने की योजना थी।
कमांडर डेवीड स्काट और चन्द्रयान चालक जेम्स इरवीन ने चन्द्रमा पर तीन दिन बिताये और कुल १८.५ घंटे यान बाह्य गतिविधीयो मे लगाये। इस अभियान मे उन्होने चन्द्रयान से दूर जाकर चन्द्रमा का अध्यन करने के लिये लूनर रोवर नामक वाहन का प्रयोग किया। इस अभियान मे उन्होने चन्द्रमा की सतह से कुल ७७ किग्रा नमुने एकत्र किये।
इस दौरान नियंत्रण यान चालक अल्फ्रेड वार्डन (जो चन्द्रमा की कक्षा मे थे) वैज्ञानिक उपकरण यान की सहायता से चन्द्रमा की सतह और वातावरण का अध्यन कर रहे थे। वे पैनोरोमीक कैमरा, गामा किरण स्पेक्ट्रोमीटर, लेजर अल्टीमीटर, द्रम्व्यमान स्पेक्ट्रोमीटर का प्रयोग कर रहे थे। अभियान के अंत मे चन्द्रमा की परिक्रमा के लिये एक उपग्रह भी छोड़ा गया।
अंतरिक्ष यात्री दल
- डेवीड स्काट(David Scott) -३ अंतरिक्ष यात्राये कमांडर
- अल्फ्रेड वोर्डन(Alfred Worden) - १ अंतरिक्ष यात्रा, नियंत्रण यान चालक
- जेम्स इरवीन(James Irwin) -१ अंतरिक्ष यात्रा चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक यात्री दल
- डीक गोर्डन (Dick Gordon)- कमांडर
- वेन्स ब्रैंड(Vance Brand)- नियंत्रण यान चालक
- हैरीशन स्कमिट(Harrison Schmitt)- चन्द्रयान चालक
द्रव्यमान
प्रक्षेपित द्रव्यमान : २,९२१,००५ किग्रा
यान का द्रव्यमान : ४६.७८२ किग्रा
चन्द्रयान का द्रव्यमान : १६,४२८ किग्रा
नियंत्रणयान का द्र्व्यमान : ३०,३५४ किग्रा
पृथ्वी की परिक्रमा : ४ जिसमे से ३ चन्द्रमा रवाना होने से पहले और १ वापस आने के बाद
चन्द्रमा की परिक्रमा : ७४
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से विच्छेद : ३० जुलाई १९७१ समय १८:१३:१६ बजे
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से पुनः जुड़ना : २ अगस्त १९७१ समय १९:१०:२५ बजे
यान बाह्य गतिविधीयां
स्काट – चन्द्रयान के उपर खडे़ रहे
प्रारंभ समय : ३१ जुलाई १९७१ , ००:१६:४९ बजे
अंत समय : ३१ जुलाई १९७१ , ००:४९:५६ बजे
कुल समय : ३३ मिनिट , ०७ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी १- स्काट और इरवीन
प्रारंभ समय : ३१ जुलाई १९७१ , १३:१२:१७ बजे
अंत समय : ३१ जुलाई १९७१ , १९:४५:५९ बजे
कुल समय : ६ घंटे ३२ मिनिट ४२ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी २- स्काट और इरवीन
प्रारंभ समय : १ अगस्त १९७१ , ११:४८:४८ बजे
अंत समय : १ अगस्त १९७१ , १९:०१:०२ बजे
कुल समय : ७ घंटे १२ मिनिट १४ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी ३- स्काट और इरवीन
प्रारंभ समय : २ अगस्त १९७१ , ०८:५२:१४ बजे
अंत समय : २ अगस्त १९७१ , १३:४२:०४ बजे
कुल समय : ४ घंटे ४९ मिनिट ५० सेकंड
यान बाह्य गतिविधी ४- वोर्डन (चन्द्रमा की परिक्रमा करते समय)
प्रारंभ समय : ५ अगस्त १९७१ , १५:३१:१२ बजे
अंत समय : ५ अगस्त १९७१ , १६:१०:१९ बजे
कुल समय : ३९ मिनिट ०७ सेकंड
अभियान के मुख्य अंश
समस्या
प्रक्षेपण के तुरंत बाद चरण १ के अलग होने पर, चरण १ के उपकरणो ने कार्य बंद कर दिया था। यह चरण २ के ज्वलन से हुआ था जिसने चरण १ के उपकरणो को जला दिया था। यह इसके पहले कभी नही हुआ था, जांच पर पता चला कि अपोलो १५ के लिये कुछ बदलाव किये गये थे जिसमे चरण १ और चरण २ काफी नजदिक हो गये थे। बाद के अभियानो मे इस बदलाव को ही बदल दिया गया।
योजना और प्रशिक्षण
अपोलो १५ के यात्रीदल ने अपोलो १२ के वैकल्पिक यात्री दल के रूप मे कार्य किया था। इस अभियान के सभी यात्री नौसेना से थे जबकि वैकल्पिक यात्री वायुसेना से थे। यह अपोलो १२ के ठीक विपरीत था।
मूल रूप से यह अभियान अपोलो १२,१३,१४ की तरह H अभियान(छोटा) अभियान था लेकिन इसे बाद मे J (चन्द्रमा पर ज्यादा समय बिताने वाले अभियान)अभियान मे बदल दिया गया। इस अभियान दल के यात्रीयो को भूगर्भ शास्त्र का गहन प्रशिक्षण दिया गया था।
इस यान ने पहली बार चन्द्रमा पर लुनर रोवर नामके चन्द्र वाहन को चन्द्रमा पर लेकर जाने का श्रेय प्राप्त किया था। यह वाहन बोइंग ने बनाया था। इस वाहन को मोड़कर ५ फीट २० इंच की जगह मे रखा जा सकता था। इसका वजन २०९ किग्रा और दो यात्रीयो के साथ ७०० किग्रा का भार ले जाने मे सक्षम था। इसके पहीये स्वतंत्र रूप से २०० वाट की बिजली की मोटर से चलते थे। यह १०-१२ किमी प्रति घंटा की गति से चल सकता था।
चन्द्रमा की यात्रा
अपोलो १५ को २६ जुलाई १९७१ को ९:३४ को प्रक्षेपित कर दिया गया। इसे चन्द्रमा तक जाने के लिये ४ दिन लगने वाले थे। पृथ्वी की कक्षा मे दो घंटे रहने के बाद , सैटर्न ५ राकेट के तीसरे चरण के इंजन SIVB को दागा गया और यान चन्द्रमा की ओर चल दिया।
चौथे दिन वे चन्द्रमा की कक्षा मे पहुंच गये और चन्द्रमा पर अवतरण की तैयारी करने लगे।
स्काट और इरवीन के चन्द्रमा पर तीन दिन के अभियान के दौरान वोर्डन के पास निरिक्षण के लिये एक व्यस्त कार्यक्रम था। इस अभियान मे एक उपकरण कक्ष भी था, जिसमे पैनोरोमीक कैमरा, गामा किरण स्पेक्ट्रोमीटर, लेजर अल्टीमीटर, द्रम्व्यमान स्पेक्ट्रोमीटर उपकरण थे। अभियान की वापिसी मे वोर्डन को यान से बाहर निकल कर कैमरो से फिल्म कैसेट भी निकाल कर लानी थी।
अपोलो १५ यह अभियान पहली बार चन्द्रमा पर तीन यान बाह्य गतिविधीया करने वाला था। चन्द्रमा पर अवतरण के बाद स्काट ने चन्द्रयान का उपर का ढक्कन खोल कर जगह का निरिक्षण किया। पहली यान बाह्य गतिविधी मे यात्री लूनर रोवर वाहन से हेडली डेल्टा पर्वत की तलहटी मे पहुंचे। यहीं पर उन्हे जीनेसीस राक(Genesis Rock) मीली। चन्द्रयान पर वापिस पहुंचने पर स्काट ने ताप से चन्द्रमा की सतह पर गढ्ढे करना शुरू किये।
यात्री हेडली रीली के किनारे तक भी गये। स्काट ने चंद्रमा पर एक पंख और एक हथोड़ा साथ मे गिराकर यह सिद्ध किया की गुरुत्वाकर्षण के कारण गीरने वाली वस्तुओ की गति पर उसके द्रव्यमान का प्रभाव नही होता है।
वापिसी की यात्रा मे यात्री एक दिन और चन्द्रमा की कक्षा मे रहे, वोर्डन अपने निरिक्षण मे लगे रहे। चन्द्रमा की कक्षा मे एक उपग्रह छोड़ने के बाद उन्होने राकेट दाग कर पृथ्वी की यात्रा शुरू की।
पृथ्वी पर वापिसी के दौरान यान का एक पैराशूट खुल नही पाया और दो पैराशुटो के साथ यान सकुशल पानी मे गीर गया।
प्रथम चन्द्र ओलंपिक : अपोलो १४
In चन्द्र अभियान on मार्च 1, 2007 at 12:05 अपराह्नअपोलो १४ यह अपोलो अभियान का आठवां मानव अभियान और चंद्रमा पर अवतरण करने वाला तीसरा अभियान था।
अंतरिक्ष यात्री दल
- एलेन शेफर्ड (Alan Shepard ) , २ अंतरिक्ष यात्राये, कमांडर
- स्टुवर्ट रूसा (Stuart Roosa) , १ अंतरिक्ष यात्रा, नियंत्रण यान चालक
- एडगर मिशेल (Edgar Mitchell) ,१ अंतरिक्ष यात्रा चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक यात्री दल
- जीन सेरनन(Gene Cernan), कमांडर
- रोनालड इवान्स(Ronald Evans), नियंत्रण यान चालक
- जो एन्गल(Joe Engle), चन्द्रयान चालक
द्रव्यमान
नियंत्रण यान: २९,२४० किग्रा
चन्द्रयान :१५,२६४ किग्रा
नियंत्रण यान से चन्द्रयान का विच्छेद : ५ फरवरी १९७१ सुबह ०४:५०:४३
चन्द्रयान का नियंत्रण यान से पुनः जुड़ना : ६ फरवरी १९७१ शाम २०:३५:४२
यान बाह्य गतिविधीयां
यान बाह्य गतिविधी १
प्रारंभ : ५ फरवरी १९७१, १४:४२:१३ बजे
अंतरिक्ष यात्री : शेफर्ड
चन्द्रमा पर अवतरण : १४:५४ बजे
यान मे वापिसी : १९:२२ बजे
अंतरिक्ष यात्री: मिशेल
चन्द्रमा पर अवतरण : १४:५८ बजे
यान मे वापिसी : १९:१८ बजे
अंत : ५ फरवरी १९:३०:५० बजे
कुल समय : ४ घंटे ४७ मिनिट और ५० सेकंड
यान बाह्य गतिविधी २
प्रारंभ : ६ फरवरी १९७१, ०८:११:१५ बजे
अंतरिक्ष यात्री :शेफर्ड
चन्द्रमा पर अवतरण : ०८:१६ बजे
यान मे वापिसी : १२:३८ बजे
अंतरिक्ष यात्री :मिशेल
चन्द्रमा पर अवतरण : ०८:२३ बजे
यान मे वापिसी : १२:२८ बजे
अंत : ६ फरवरी १२:४५:५६ बजे
कुल समय : ४ घंटे ३४ मिनिट और ४१ सेकंड
अभियान के मुख्य मुद्दे
इस अभियान की शुरुवात मे चन्द्रयान ‘कीटी हाक’ को चन्द्रयान ‘अंटारेस‘ से जुड़ने मे कुछ समस्याये आयी थी। इस प्रक्रिया मे कुल १ घंटा और ४२ मिनिट लग गये थे।
मार्ग मे चन्द्रयान को दो समस्याओ से जुझना पडा था। पहली समस्या मे कम्प्युटर ने अभियान के असफल होने के संकेत देने शुरू कर दिये थे। नासा के अनुसार यह कम्युटर के तारो के सर्किट बोर्ड के किसी जोड मे आयी किसी खराबी की वजह से था। इसका एक हल जोडो मे टेप लगाना था। इस हल ने कुछ समय तक काम किया लेकिन कुछ देर बाद फिर से परेशानी आ गयी। यदि यह परेशानी अवरोह इंजन के दागे जाने पर आती तब कम्युटर इस संकेत को सही संकेत समझकर स्वचालित रुप से अभियान को रोक देता जिससे आरोह इंजन अवरोह इंजन से अलग होकर चन्द्रयान वापिस चन्द्रमा की कक्षा मे चला जाता। दूसरा हल कम्प्युटर के प्रोग्राम को बदलने का था जिसमे इस संकेत पर कोई ध्यान नही दिया जाता। शेफर्ड और मिशेल ने इस हल पर काम किया और कम्प्युटर के प्रोग्राम को समय रहते बदल दिया।
दूसरी समस्या राडार मे आयी थी, राडार चन्द्रमा पर लाक नही हो पा रहा था। जो कुछ प्रयासो के बाद ठीक हो गयी। शेफर्ड ने इस यान को बाकी चन्द्रमा अवतरणो की तुलना मे अपने निर्धारित जगह से काफी निकट उतारा था।
फ्रा माउरो संरचना जो कि अपोलो १३ का योजनागत अवतरण स्थल था पर ही अपोलो १४ को उतारा गया था। मीशेल और शेफर्ड मे चन्द्रमा की सतह पर दो बार उतरकर चन्द्रमा की सतह पर भूगर्भिय गतिविधीयो का अध्यन किया। इस अभियान मे उन्होने एक चन्द्र रीक्शा का प्रयोग किया।
दूसरे अवतरण मे यात्रीयो का उद्देश्य क्रोनर क्रेटर का अध्यन था लेकिन वे क्रेटर को ढूंढ नही पाये। बाद मे पता चला की वे क्रेटर से सिर्फ ६५ फिट की तक पहुंच गये थे।
शेफर्ड और मिशेल ने अनेक उपकरण लगा कर आंकडे़ जमा किये और लगभग ४५ किग्रा चन्द्रमा के नमुने जमा किये। इस अभियान की अन्य विशेषताओ मे चन्द्रमा पर पहली बार सामान ढोने के लिये वाहन का प्रयोग, चन्द्रमा से सबसे ज्यादा मात्रा मे नमुने जमा कर वापिस लाना, चन्द्रमा की सतह पर सबसे लंबा समय व्यतित करना(३३ घंटे), सबसे लंबी यान बाह्य गतिवीधी ( ९ घंटे १७ मिनिट), चन्द्र्मा की सतह पर पहली बार रंगीन टीवी का प्रयोग आदि थे।
यह यात्री दल चन्द्रमा से वापिस आने के बाद कुछ समय के लिये अलग वातावरण मे रखा जाने वाला अंतिम यात्री दल था।
इस अभियान मे शेफर्ड ने अन्य लोगो की नजर बचाकर छः लोहे की गोल्फ क्लब और २ गोल्फ गेंद लेकर गये थे। उन्होने चन्द्र्मा की सतह पर एक हाथ से कुछ गोल्फ के शाट भी लगाये। मिशेल ने भी एक लोहे की छड से चन्द्रमा पर भाला फेंकने की कोशीश कर डाली। इस तरह चन्द्रमा पर पहला ओलंपिक सफल हुआ।
एक सफल असफल अभियान : अपोलो १३
In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 20, 2007 at 5:03 अपराह्नअपोलो १३ यह अपोलो अभियान का चद्रंमा अवतरण का तृतीय मानव अभियान था। इसे ११ अप्रैल १९७० को प्रक्षेपित किया गया था। प्रक्षेपण के दो दिन बाद ही इसमे एक विस्फोट हुआ जिसके कारण नियंत्रण यान से आक्सीजन का रीसाव शुरू हो गया और बिजली व्यवस्था चरमरा गयी। अंतरिक्षयात्रीयो ने चन्द्रयान को जिवन रक्षक यान के रूप मे प्रयोग किया और पृथ्वी मे सफलता पूर्वक वापिस आने मे सफल रहे। इस दौरान उन्हे बिजली, गर्मी और पानी की कमी जैसी समस्याओ से जुझना पडा लेकिन वे मौत के जबडो से वापिस सकुशल लौट आये।
अंतरिक्ष यात्री
- जेम्स ए लावेल(James A. Lovell) -४ अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव, कमांडर
- जान एल स्वीगर्ट (John L. Swigert)- १ अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव, मुख्य नियंत्रण यान चालक
- फ्रेड डब्ल्यु हैसे (Fred W. Haise )- १ अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव,चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक यात्री दल
- जान यंग (John Young) -कमांडर
- जान एल स्वीगर्ट (John L. Swigert)- १ अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव, मुख्य नियंत्रण यान चालक
- चार्लस ड्युक ( Charles Duke), चन्द्रयान चालक
अपोलो १३ अभियान फ़्रा मौरो संरचना का अध्यन करने वाला था। इस संरचना का नाम फ़्रा मौरो क्रेटर के नाम है जो कि इस संरचना के अंदर स्थित है।
इस अभियान मे समस्या प्रक्षेपण के तुरंत बाद ही आनी शुरू हो गयी थी। प्रक्षेपण के दूसरे चरण मे मध्य इंजन दो मिनट पहले ही बंद हो गया, इस कमी को पूरा करने के लिये चार बाहरी इंजन को ज्यादा देर तक जलाना पढा। अभियंताओ ने बाद मे पाया कि यह पोगो दोलन की वजह से था जिसने दूसरे चरण के इंजनो को ६८g के १६ हर्टज के कंपनो से चीर दिया था। इसके पहले के अभियानो मे पोगो दोलन का अनुभव किया गया था लेकिन यह काफी तिव्र था। इसके बाद के अभियानो मे प्रतिपोगो दोलन प्रणाली लगायी गयी थी।
विस्फोट
यान चन्द्रमा की ओर अपने रास्ते मे पृथ्वी से ३२१,८६० किमी दूरी पर था, नियंत्रण यान के क्रमांक २ के आक्सीजन टैंक मे विस्फोट हुआ। इस घटना की शुरुवात कुछ ऐसे हुयी। पृथ्वी स्थित अभियान नियंत्रण केन्द्र ने आक्सीजन टैंक को हिलाने(Stir) के लिये कहा, यह कार्य द्रव आक्सीजन मे तापमान की विभीन्न अवस्थाओ मे होने वाली सतहो के निर्माण से रोकने के लिये होता है। इस प्रक्रिया को Stratification कहते है। लेकिन इस दौरान आक्सीजन के टैंक को हिलाने वाली मोटर के तारो मे आग लग गयी। इस आग से द्रव आक्सीजन गर्म होने लगी और उससे दबाव बढकर १००० PSI तक पहुंच गया। फलस्वरूप टैंक मे विस्फोट हो गया। यह एक अनुमान है, अन्य अनुमानो मे यान से किसी उल्का के टकराव से हुआ विस्फोट भी है।
इस विस्फोट से कई उपकरण नष्ट हो गये और आक्सीजन टैंक क्रमांक १ को भी गंभीर नुकसान पहुंचा। नियंत्रण यान बिजली निर्माण के लिये आक्सीजन पर निर्भर था, इस विस्फोट के कारण बिजली निर्माण कम हो गया। नियंत्रण यान मे पृथ्वी के वातावरण मे पुनः प्रवेश ले लिये बैटरी थी, लेकिन ये सिर्फ १० घंटो के लिये काफी थी। इन बैटरीयो को पृथ्वी मे सकुशल वापस लौटने के लिये बचाना जरूरी था, इसलिये यात्रीदल अब जिवन रक्षा के लिये चन्द्रयान पर निर्भर था। इस अभियान के पहले चन्द्रयान को ‘जिवन रक्षा नौका’ की तरह उपयोग का एक बार रिहर्शल किया गया था, जिसे अब वास्तविकता मे रूपांतरण करना था।
इस विस्फोट के कारण चन्द्रमा पर अवतरण अभियान रद्द कर दिया गया और चन्द्रमा की एक परिक्रमा के साथ पृथ्वी पर सकुशल वापिसी की प्रक्रिया ‘स्वतंत्र वापिसी प्रक्षेपपथ ‘ (Free return trajectory) शुरू की गयी। यह प्रक्रिया चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के प्रयोग से यान को पृथ्वी की ओर धकेल देती है। पृथ्वी के वातावरण मे आने के लिये यान के पथ को बीच बीच मे बदलना जरूरी था,जिसके लिये नियंत्रण यान के इंजनो को दागा जाना था। लेकिन नियंत्रको को यान मे हुये नुकसान का अनुमान नही था। वे नियंत्रण यान मे आग लगने का खतरा नही उठाना चाहते थे। अंत मे यान के पथ के बदलावो के लिये चन्द्रयान के अवरोह इंजनो का प्रयोग किया गया।
अत्यंत दबाव के मध्य अब यात्रीयो की सकुशल वापिसी के लिये अब अत्यंत कुशलता की आवश्यकता थी। सारा विश्व इस अभियान को पर नजर रखे हुये था। बिजली समस्या के कारण इस अभियान का सीधा प्रसारण नही किया गया था।
सबसे बडी परेशानी की वजह यह थी कि जिवनरक्षक नौका (चन्द्र्यान) दो यात्रीयो के लिये दो दिनो के लिये ही बनायी गयी थी, अब उसे तीन यात्रीयो द्वारा चार दिनो तक प्रयोग करना था। सबसे गंभीर समस्या थी की लीथीयम हायड्राक्साईड के कंटेनरो की चार दिनो के लिये अनुपलब्धता थी,यह लिथीयम हायड्राक्साईड कार्बन डाय आक्साईड को यान से साफ करती है। नियंत्रण यान मे लीथीयम हायड्राक्साईड के कंटेनरो इसकी उचित मात्रा थी लेकिन ये कंटेनर चन्द्रयान मे लगाने के लिये आकार मे नही थे। अब उन कंटेनरो को कीसी तरह उपलब्ध पदार्थो द्वारा एक अनुकूलक निर्माण कर चन्द्रयान मे लगाना था।
जैसे ही पृथ्वी के वातावरण मे पुनःप्रवेश का समय नजदिक आया, नासा ने नियंत्रण कक्ष को अलगकर उसकी तसवीरे लेने का निर्णय किया जिससे दुर्घटना के कारणो का पता लगाया जा सके। यात्रीयो ने जब नियंत्रण कक्ष को देखा तो उन्होने पाया कि नियंत्रण यान की संपुर्ण लम्बाई मे स्थित आक्सीजन टैंक को ढकने वाला कवर विस्फोट मे उड गया था।
एक भय यह भी था कि वापिसी के दौरान चन्द्रयान मे तापमान की कमी के कारण जल घनीभूत ना हो जाये। लेकिन आशंका निर्मूल साबित हुयी। इस सफलता के पिछे एक कारण अपोलो १ की आग के बाद अभिकल्पना मे किये गये बदलाव भी थे।
यात्री सफलता पुर्वक वापिस आ गये, लेकिन हैसे को मुत्राशय मे संक्रमण हो गया था जो कि पानी की उचित मात्रा मे अनुपलब्धता के कारण था। यह अभियान असफल जरूर था लेकिन यात्री भाग्यशाली थे क्योंकि विस्फोट यात्रा के प्रथम चरण मे हुआ था। इस समय उनके पास ज्यादा मात्रा मे रसद, उपकरण और बिजली थी। यदि विस्फोट चन्द्रमा की कक्षा मे या पृथ्वी की वापिसी के चरण मे होता तब यात्रीयो के बचने की संभावना काफी कम थी।
यह भी एक संयोग था कि आक्सीजन टैंक को हीलाने की प्रक्रिया अभियान के प्रथम चरण मे करनी पडी, सामान्यतः यह प्रक्रिया यात्रा के अंतिम चरण मे करनी पड़ती है।
अपोलो १२: एक बडा कदम !
In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 15, 2007 at 1:36 पूर्वाह्नअपोलो १२ यह अपोलो कार्यक्रम का पांचवा और चन्द्रमा पर उतरने वाला दूसरा मानव अभियान था।
अंतरिक्ष यात्री दल
- पीट कोर्नाड(Pete Conrad)-३ अंतरिक्ष यात्राये, कमांडर
- रिचर्ड गोर्डान(Richard Gordon) - २ अंतरिक्ष यात्राये, मुख्य नियंत्रण यान चालक
- एलन बीन(Alan Bean)- एक अंतरिक्ष यात्रा चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक यात्री दल
- डेवीड स्काट(David Scott) -जेमिनी ८, अपोलो ९ और अपोलो १५ की उड़ान, कमांडर
- अल्फ्रेड वार्डन(Alfred Worden) अपोलो १५ की उड़ान, नियत्रण यान चालक
- जेम्स इरवीन( James Irwin) - अपोलो १५ की उड़ान , चन्द्र यान चालक
चन्द्रयान और मुख्य नियंत्रण यान का विच्छेद : १९ नवंबर १९६० सुबह ४ बजकर १६ मिनिट २ सेकंड
चन्द्रयान और मुख्य नियंत्रण यान का पुनः जुडना : २० नवंबर १९६० शाम ५ बजकर ५८ मिनिट २० सेकंड
यानबाह्य गतिविधीयाँ
यानबाह्य गतिविधी -१
शुरुवात : १९ नवंबर १९६९ ११ बजकर ३२ मिनिट ३५ सेकंड
कोर्नार्ड : चन्द्रमा पर उतरे : ११ बजकर ४४ मिनिट २२ सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : १५ बजकर २७ मिनिट १७ सेकंड
बीन : चन्द्रमा पर उतरे : १२ बजकर १३ मिनिट ५० सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : १५ बजकर १४ मिनिट १८ सेकंड
अंत १९ नवंबर १५ बजकर २८ मिनिट और ३८ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी काल : ३ घंटे ५६ मिनिट और ०३ सेकंड
यानबाह्य गतिविधी -२
शुरुवात : २० नवंबर १९६९ -०३ बजकर ५४ मिनिट ४५ सेकंड
कोर्नार्ड : चन्द्रमा पर उतरे : ०३ बजकर ५९ मिनिट ०० सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : ०७ बजकर ४२ मिनिट ०० सेकंड
बीन : चन्द्रमा पर उतरे : ०४ बजकर ०६ मिनिट ०० सेकंड
वापिस चन्द्रयान मे : ०७ बजकर ३० मिनिट ०० सेकंड
अंत १९ नवंबर १५ बजकर २८ मिनिट और ३८ सेकंड
यान बाह्य गतिविधी काल : ३ घंटे ४९ मिनिट और १५ सेकंड
कोर्नाड का चन्द्रमा पर कदम रखने के बाद का कथन
व्हूपी, नील के लिये यह एक छोटा कदम होगा, लेकिन मेरे लिये काफी बडा है।अभियान की मुख्य बाते
इस यान के पृथ्वी से प्रक्षेपण के तुरंत बाद सैटर्न ५ राकेट से एक बिजली टकरा गयी थी। चन्द्रयान के उपकरण कुछ क्षणो के लिये बंद हो गये थे और भूस्थित नियंत्रण कक्ष से उसका संपर्क टूट गया था। उसके बाद जब संपर्क स्थापित हुआ तब संकेत की गुणवत्ता काफी खराब थी और यान से प्राप्त जानकारी अपुर्ण और गलत प्रतित हो रही थी।
भूनियंत्रण कक्ष से निर्देश भेजा गया कि यान के संकेत भेजने वाले उपकरण की बिजली को बंद कर चालु किया जाये। यह प्रक्रिया करने के बाद यान और भूनियंत्रण कक्ष के बीच ठीक संपर्क स्थापित हो गया अन्यथा यह अभियान यही पर रोक देना पड़ता। इसके बाद यान की जांच की गयी और तीसरे चरण के SIVB को दागा गया और यान चन्द्रमा की ओर चल दिया।
अपोलो १२ अभियान चन्द्रमा पर तुफानो के समुद्र(Ocean of Storms) स्थल पर उतरा, जहां इसके पहले मानव रहित लुना ५, सर्वेयर ३ और रेंजर ७ उतर चुके थे। इस स्थल को अब स्टेटीओ काग्नीटम(Statio Cognitium) कहा जाता है।
यह अभियान चन्द्रमा पर अवतरण की अचुकता के लिये एक जांच था। अवरोह स्वचालित था जिसमे कोर्नाड ने कुछ छोटे परिवर्तन किये थे। अपोलो ११ अभियान अपनी निर्धारित जगह से काफी बाहर उतरा था, वह भी स्वचालित अवरोह को बंद कर , आर्मस्ट्रांग द्वारा नियंत्रण अपने हाथो मे लेने के बाद। लेकिन यह अभियान सही जगह पर ही उतरा। इस यान के २०० मीटर दूरी पर सर्वेयर ३ यान पडा था जो कि वहां पर अप्रैल १९६७ पहुंचा था।
इस बार टीवी की तस्वीरो की गुणवत्ता मे सुधार के लिये एक रंगीन कैमरा ले जाया गया था। लेकिन दुर्घटनावश बीन ने कैमरा को सूर्य की ओर निर्देशीत कर दिया जिससे वह खराब हो गया और सीधा प्रसारण शुरू होते साथ ही टूट गया।
कोर्नाड और बीन ने सर्वेयर के कुछ टूकडे पृथ्वी पर लाने के लिये जमा किये। दोनो ने चन्द्रमा की सतह पर दो बार कुल चार घंटे बिताये। दोनो ने चन्द्रमा की मिट्टी और पत्त्थरो के टुकडे जमा किये। चन्द्रमा की भूमी पर सौर वायु, चुम्बकत्व, भू हलचलो को मापने के लिये उपकरण स्थापित किया और परिणामो को पृथ्वी पर भेजा। गलती से बीन कई खींची गयी तस्वीरो की फिल्मे चन्द्रमा पर ही छोड आये।
इस बार भी चन्द्रमा पर एक और प्लेट छोडी गयी जिसपर अंतरिक्ष यात्रीयो के हस्ताक्षर और संदेश लिखा था। इसके बाद चन्द्रयान चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहे नियंत्रण यान से आकर जुड गया। इस दौरान चन्द्रयान ने अपना राकेट चन्द्रमा पर गीरा दिया था, जो चन्द्रमा की सतह पर २० नवंबर १९६९ को गीरा। इस राकेट के चन्द्रमा की सतह पर आघात के कंपन को भूकंप मापी यंत्र जो चन्द्रमा की सतह पर रखा गया था ने महसूस किये। ये कंपन अगले एक घंटे तक महसूस किये गये। यात्री चंद्रमा की कक्षा मे एक दिन और रहकर तस्वीरे लेते रहे।
चन्द्रयान पृथ्वी पर वापिस २४ नवंबर १९६९ को २० बजकर ५८ मिनिट पर प्रशांत महासागर मे गीर गया।
यह यान ‘वर्जीनीया एअर एन्ड स्पेश सेन्टर’ मे रखा है।
अपोलो ११: मानवता की एक बडी छलांग
In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 14, 2007 at 1:17 पूर्वाह्नअपोलो ११ यह पहला मानव अभियान था जो चन्द्रमा पर उतरा था। यह अपोलो अभियान की पांचवी मानव उडान थी और चन्द्रमा तक की तीसरी मानव उडान थी। १६ जुलाई १९६९ को प्रक्षेपित इस यान से कमांडर नील आर्मस्ट्रांग, नियंत्रण यान चालक माइकल कालींस और चन्द्रयान चालक एडवीन आलड्रीन गये थे। २० जुलाई को आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन चन्द्रमा पर कदम रखने वाले पहले मानव बने।
इस अभियान ने अमरीकी राष्ट्रपति के १९६० के दशक मे चन्द्रमा पर मानव के सपने को पूरा किया था।यह २० वी शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण क्षणो मे से एक था।
अंतरिक्ष यात्री
- नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) -२ अंतरिक्ष यात्राये, कमांडर
- माइकल कालींस (Michael Collins) -२ अंतरिक्ष यात्राये, नियंत्रण यान चालक
- एडवीन ‘बज़’ आल्ड्रीन(Edwin ‘Buzz’ Aldrin )- २ अंतरिक्ष यात्राये, चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक यात्री
- जेम्स लावेल (James Lovell) -जेमिनी ७, जेमिनी १२, अपोलो ८ और अपोलो १३ की उडान, कमांडर
- बील एंडर्स (Bill Anders) – अपोलो ८ मे उडान ,नियंत्रण यान चालक
- फ्रेड हैसे (Fred Haise) - अपोलो १३ मे उडान, चन्द्र यान चालक
१० लाख लोग जो राजमार्गो , प्रक्षेपण स्थल के निकट के समुद्री बिचो पर थे के अलावा ६० करोड लोगो ने इस प्रक्षेपण को अपने टीवी पर देखा था जोकि अपने समय का एक किर्तीमान था। अमरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने यह व्हाइट हाउस के ओवल आफिस से यह टीवी पर देखा था।
अपोलो ११ यह सैटर्न ५ राकेट से केनेडी अंतरिक्ष केन्द्र से १६ जुलाई १९६९ को सुबह के ९ बजकर ३२ मिनिट पर प्रक्षेपित किया गया था। वह पृथ्वी की कक्षा मे १२ मिनिट बाद प्रवेश कर गया। पृथ्वी की एक और आधी परिक्रमा के बाद SIVB तृतीय चरण के राकेट ने उसे चण्द्रमा की ओर के पथ पर डाल दिया। इसके ३० मिनिट बाद मुख्य नियंत्रण यान सैटर्न ५ राकेट के अंतिम चरण से अलग हो गया और चन्द्रयान को लेकर चन्द्रमा की ओर रवाना हो गया।
१९ जुलाई को अपोलो ११ चन्द्रमा के पिछे पहुंच गय और अपने राकेट के एक प्रज्वलन की सहायता से चन्द्रमा की कक्षा मे प्रवेश कर गया। चन्द्रमा की अगली कुछ परिक्रमाओ मे यात्रीयो ने चन्द्रयान के उतरने की जगह का निरिक्षण किया। उतरने के लिये “सी आफ ट्रैन्क्युलीटी-Sea of Tranquility” का चयन किया गया था क्योंकि यह एक समतल जगह थी। यह सुचना रेन्जर ८, सर्वेयर ५ और लुनर आर्बीटर यानो ने दी थी।
२० जुलाई १९६९ जब अपोलो ११ चंद्रमा की पृथ्वी से विपरित दिशा मे था, तब चन्द्रयान जिसे इगल(Eagle) नाम दिया गया था, मुख्य यान (जिसका नाम कोलंबीया था) से अलग हो गया। कालींस जो अब अकेले कोलंबिया मे थे, इगल चन्द्रयान का निरिक्षण कर रहे थे कि उसे कोई नुकसान तो नही पहुंचा है। आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन ने इगल का अवरोह इंजन दागा और धीरे धीरे चन्द्रमा पर यान को उतारने मे जुट गये।
जैसे ही यान उतरने की प्रक्रिया शुरु हुयी, आर्मस्ट्रांग ने यान के अपने पथ से दूर जाने का संकेत भेजा। इगल अपने निर्धारित पथ से ४ सेकंड आगे था जिसका मतलब यह था कि वे निर्धारित जगह से मिलो दूर उतरेंगे। चन्द्रयान नियंत्रण और मार्गदर्शक कम्प्युटर ने खतरे के संकेत देने शुरू कर दिये, जिससे आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन जो खिडकी से बाहर देखने मे व्यस्त थे; का ध्यान कम्प्युटर की ओर गया। नासा मे होस्टन मे अभियान नियंत्रण केन्द्र मे अभियान नियंत्रक स्टीव बेल्स ने अभियान के निर्देशक को सुचना दी कि खतरे के संकेत के बावजुद यान को उतारना सुरक्षित है क्योंकि कम्प्युटर सिर्फ सुचना दे रहा है क्योंकि उसके पास काम ज्यादा है लेकिन यान को कुछ नही हुआ है। आर्मस्ट्रांग का ध्यान अब यान के बाहर की ओर गया, उन्होने देखा कि कम्प्युटर यान को एक बडे गढ्ढे(क्रेटर) के पास बडी बडी चटटानो की ओर ले जा रहा है। आर्मस्ट्रांग ने स्वचालीत प्रणाली को बंद यान का नियंत्रण अपने हाथो मे लिया और आल्ड्रीन की सहायता से २० जुलाई को रात के ८ बजकर १७ मिनिट पर इगल को चन्द्रमा की सतह पर उतार लिया। उस समय अवरोह इंजन मे सिर्फ १५ सेकंड का इंधन बचा था।
कम्प्युटर के खतरे के संकेत इसलिये थे कि वह दिये गये समय मे अपना कार्य पूरा नही कर पा रहा था। उस गणना करने मे ज्यादा समय लग रहा था जबकि यान अपनी गति से उतरते हुये उसे नये आंकडे देते जा रहा था। अपोलो ११ ऐसे भी कम इंधन के साथ चन्द्रमा पर उतरा था लेकिन उसे खतरे का संकेत ऐसा होने के पहले ही मिल गया था जो कि चन्द्रमा के कम गुरुत्व का परिणाम था।
आर्मस्ट्रांग ने अपोलो ११ के उतरने के स्थल को ट्रैक्युलीटी बेस का नाम दिया और होस्टन कोस संदेश भेजा
“होस्टन, यह ट्रैक्युलीटी बेस है, इगल उतर चुका है!”यान से निचे उतर कर यान बाह्य गतिविधीयां प्रारंभ करने से पहले आलड्रीन ने संदेश प्रसारीत किया
“मै चन्द्रयान का चालक हूं। मै इस प्रसारण को सुन रहे सभी लोगो जो जहां भी हैं जैसे भी है निवेदन करता हूं कि वे एक क्षण मौन रह कर पिछले कुछ घंटो मे हुयी घटनाओ का अवलोकन करें और उसे(भगवान को) अपने तरिके से धन्यवाद दे।”मानव का एक छोटा कदम
मानव का यह एक छोटा कदम, मानवता की एक बडी छलांग है।(That’s one small step for (a) man, one giant leap for mankind)
आल्ड्रीन उसके साथ आये और कहा
सुंदर सुंदर, विशाल उजाड़ स्थान (Beautiful. Beautiful. Magnificent desolation)आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रीन ने अगले ढाई घंटे तस्वीरे लेने, गढ्ढे खोद कर नमुने जमा करने और पत्त्थर जमा करने मे लगाये।
इसके बाद उन्होने EASEP-Early Apollo Scientific Experiment Package की स्थापना और अमरीकी ध्वज लहराने की तैयारीयां शुरू की। इसके लिये उन्हे निर्धारीत दो घंटो से ज्यादा समय लगा। तैयारीयो के बाद तकनिकी बाधाओ और खराब मौसम के बावजुद सारे विश्व मे चन्द्रमा की सतह से सीधा प्रसारण शुरू हो गया जो कि श्वेत श्याम था जिसे कम से कम ६० करोड लोगो ने देखा।
यह राष्ट्रपति केनेडी के सपने को पूरा करने के अलावा यह अपोलो अभियान का एक अभियांत्रीकी कौशलता की भी जांच थी। आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रयान की तस्वीरे ली जिससे उसके चन्द्रमा पर उतरने के बाद की हालात की जांच हो सके। इसके बाद उसने धूल , मिट्टी के कुछ और नमुने लिये और अपनी जेब मे रखे। टीवी कैमरा से आर्मस्ट्रांग ने चारो ओर का एक दृश्य लिया।
दोनो ने चन्द्रमा पर अमरीकी ध्वज लहराया उसके बाद राष्ट्रपति निक्सन से फोन पर बातें की।
उसके बाद उन्होने EASEP की स्थापना की। इसके बाद दोनो तस्वीरे लेने और नमुने जमा करने मे व्यस्त रहे
वापिसी की यात्रा
आल्ड्रीन इगल मे पहले वापिस आये। उन दोनो ने मिलकर कीसी तरह २२ किग्रा नमुनो के बाक्स और फिल्मो को यान मे एक पूली की सहायता से चढाया। आर्मस्ट्रांग उसके बाद यान मे सवार हुये।चन्द्रयान के जिवन रक्षक वातावरण मे आने के बाद उन्होने अपने जुते और बैकपैक सूट उतारे। उसके बाद वे सोने चले गये।
सात घंटो की निंद के बाद होस्टन केन्द्र ने उन्हे जगाया और वापिसी की यात्रा की तैयारी के लिये कहा। उसके ढाई घंटो के बाद शाम के ५.५४ बजे उन्होने इगल के आरोह इंजन को दागा। चन्द्रमा की कक्षा मे नियंत्रण यान कोलंबिया मे उनका साथी कालींस उनका इंतजार कर रहा था।
चन्द्रमा की सतह पर के ढाई घंटो के बाद वे चन्द्रमा की सतह पर ढेर सारे उपकरण , अमरीकी ध्वज और सीढीयो पर एक प्लेट छोडकर आये। इस प्लेट पर पृथ्वी का चित्र, अंतरिक्ष यात्रीयो एवं राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और एक वाक्य था। यह वाक्य था
इस स्थान पर पृथ्वी ग्रह के मानवो अपने पहले कदम रखे। हम मानवता की शांति के लिये यहां आये।(Set Foot Upon the Moon, July 1969 A.D. We Came in Peace For All Mankind.)
इगल के कोलंबिया से जुडने के बाद वापिस पृथ्वी की यात्रा प्रारंभ हो गयी। २४ जुलाई को अपोलो ११ पृथ्वी पर लौट आया। यान प्रशांत महासागर मे गीरा, उसे यु एस एस हार्नेट से उठाया गया। उनके स्वागत के लिये राष्ट्रपति निक्सन स्वयं जहाज मे मौजुद थे। यात्रीयो को कुछ दिनो तक अलग रखा गया। यह चन्द्रमा की धूल मे किसी अज्ञात आशंकित परजिवी की मौजुदगी के पृथ्वी के वातावरण मे फैलने से बचाव के लिये किया गया। बाद मे ये आशंका निर्मूल साबीत हुयी। १३ अगस्त १९६९ अंतरिक्ष यात्री बाहर आये।
उसी शाम को इन यात्रीयो के सम्मान के लिये लास एन्जिल्स मे एक भोज दिया गया , जिसमे अमरीकी कांग्रेस के सदस्य, ४४ गवर्नर,मुख्य न्यायाधीस और ८३ देशो के राजदूत आये। यात्रीयो को अमरीकी सर्वोच्च सम्मान “प्रेसेडेसीयल मेडल ओफ़ फ्रीडम” दिया गया। १६ सीतंबर १९६९ को तीनो यात्रीयो ने अमरीकी कांग्रेस को संबोधीत किया।
इस यात्रा का मुख्य नियंत्रण कक्ष कोलंबीया वाशींगटन मे नेशनल एअर एन्ड स्पेस म्युजियम मे रखा है।
इस अभियान से जुडी एक दिलचस्प तथ्य यह है कि किसी दूर्घटना की स्थिती मे राष्ट्रपति निक्सन द्वारा दिया जाने वाला संदेश तैयार रखा गया था। इस संदेश के प्रसारण के बाद चन्द्रमा से संपर्क तोड दिया जाता और एक पादरी द्वारा उनकी आत्मा की शांती के लिये प्रार्थना की जाने वाली थी।
कुछ तस्वीरे और भी
अपोलो १० : मानव इतिहास का सबसे तेज सफर
In चन्द्र अभियान on फ़रवरी 13, 2007 at 1:40 पूर्वाह्नअपोलो १० अपोलो कार्यक्रम का चतुर्थ मानव अभियान था। यह दूसरा अंतरिक्ष यात्री दल था जिसने चन्द्रमा की परिक्रमा की। इस अभियान मे चंद्रयान(Lunar Module) की चन्द्रमा की कक्षा मे जांच की गयी थी। अपोलो ९ ने चंद्रयान की पृथ्वी की कक्षा मे जांच की थी जबकि अपोलो ८ जिसने प्रथम बार चन्द्रमा की परिक्रमा की थी ;चन्द्रयान लेकर नही गया था।
२००१ के गिनीज विश्व किर्तीमान के अनुसार अपोलो १० के यात्री मानव इतिहास मे सबसे तेज यात्री है। उन्होने ३९,८९७ किमी प्रति घंटा की गति से यात्रा की थी। यह गति उन्होने २६ मई १९६९ को चन्द्रमा से वापिस आते समय प्राप्त की थी।
थामस स्टैफोर्ड(Thomas Stafford) -तीन अंतरिक्ष यात्रा ,कमांडर
जान डब्ल्यु यंग(John W. Young)-तीन अंतरिक्ष यात्रा ,नियंत्रण कक्ष चालक
युगेने सेरनन (Eugene Cernan) -दो अंतरिक्ष यात्रा, चन्द्रयान चालक
वैकल्पिक दल
गोर्डन कुपर (Gordon Cooper) – मर्क्युरी ९ और जेमीनी ५ का अनुभव , कमांडर
डान आईले (Donn Eisele) -अपोलो ७ का अनुभव, नियंत्रण कक्ष चालक
एडगर मीशेल(Edgar Mitchell)- अपोलो १४ मे उडान , चन्द्रयान चालक
अभियान के कुछ आंकड़े
द्रव्यमान : मुख्य नियंत्रण कक्ष २८,८३४ किग्रा, चन्द्रयान १३,९४१ किग्रा
पृथ्वी की कक्षा
१८४.५ किमी x 190 किमी
अक्ष : ३२.५ डीग्री
१ परिक्रमा के लिये लगा समय : ८८.१ मिनिट
चन्द्र कक्षा
१११.१ किमी x ३१६.७ किमी
अक्ष: १.२ डीग्री
एक पारिक्रमा के लिये लगा समय : २.१५ घंटे
मुख्य नियंत्रण यान और चन्द्रयान जांच
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से विच्छेद - २२ मई १९६९ शाम ७.००.५७ बजे
चन्द्रयान का मुख्य नियंत्रण यान से फिर से जुडना – २३ मई १९६९ सुबह ०३.००.०२ बजे
२२ मई को रात के ८.३५.०२ बजे, चन्द्रयान का अवरोह इंजन २७.४ सेकंड के लिये दागा गया जिससे चन्द्रयान चन्द्रमा की ११२.८ किमी x १५.७ किमी की कक्ष मे प्रवेश कर गया था। यह यान चन्द्रमा की सतह से रात के नौ बजकर २९ मिनिट और ४३ सेकंड पर चन्द्रमा की सतह से १५.६ किमी उपर था।
इस अभियान की मुख्य बाते
यह अभियान चन्द्रमा पर मानव के अवतरण का अंतिम अभ्यास था। एक तरह से फुल ड्रेस रिहर्शल था। चन्द्रयान (जिसे स्नुपी नाम दिया गया था ) मे सवार स्टैफोर्ड और सेरनन चन्द्रमा की सतह से १५.६ किमी दूर रह गये थे। चन्द्रमा की सतह पर यान के लैण्ड करने वाले अंतिम अवरोह के अलावा सभी कुछ इस अभियान मे किया गया। अंतरिक्ष मे और पृथ्वी पर के नियंत्रण कक्षो ने अपोलो का नियंत्रण और मार्ग दर्शन की सभी जांच सफलतापुर्वक की। पृथ्वी की कक्षा से निकलने के कुछ क्षण बाद SIVB राकेट नियंत्रण कक्ष यान से अलग हो गया था। चन्द्रयान अभी भी राकेट मे लगा था। नियंत्रण कक्ष १८० डीग्री घुम कर SIVB से चन्द्रयान को अपने साथ जोडकर राकेट से अलग हो गया और अपनी चन्द्रमा की यात्रा पर रवाना हो गया।
चन्द्रमा की कक्षा मे पहुंचने के बाद यंग मुख्य नियंत्रण कक्ष(जिसे चार्ली ब्राउन नाम दिया गया था) मे ही रहे, स्टैफोर्ड और सेरेनन चन्द्रयान मे चले गये। चन्द्रयान मुख्य नियंत्रण यान से अलग हो कर ‘सी आफ ट्रैन्क्युलीटी’ जगह का सर्वे करने चला गया जहां अपोलो ११ उतरने वाला था। यह चन्द्रयान चन्द्रमा पर उतर नही सकता था क्योंकि इसके पैर नही थे। इस चन्द्रयान ने पहली बार अंतरिक्ष से रंगीन टीवी प्रसारण भी किया।
उसके बाद चन्द्रयान वापिस मुख्य नियंत्रण यान से जुडगया और वापिस पृथ्वी की ओर चल दिया।
यह यान प्रदर्शनी के लिये लिये लंदन मे रखा हुआ है।
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