Tuesday 22 January 2013

पृथ्वी’


                                     पृथ्वी’  


गुरूत्वाकर्षण ट्रैक्टर : पृथ्वी को किसी क्षुद्रग्रह की टक्कर से बचाने का अभिनव उपाय


गुरूत्वाकर्षण ट्रैक्टर : अंतरिक्ष मे क्षुद्रग्रह के पथ को विचलित करना
गुरूत्वाकर्षण ट्रैक्टर : अंतरिक्ष मे क्षुद्रग्रह के पथ को विचलित करना
आपने हालीवुड की फिल्मे “डीप इम्पैक्ट” या “आर्मागेडान” देखी होंगी। इन दोनो फिल्मो के मूल मे है कि एक धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराने वाला होता है। इस घटना मे पृथ्वी से समस्त जीवन के नाश का संकट रहता है। माना जाता है कि 65 करोड़ वर्ष पूर्व एक ऐसे ही टकराव मे पृथ्वी पर से डायनासोर का विनाश हो गया था।
यदि ऐसी कोई घटना भविष्य मे हो तो मानवता अपने बचाव के लिये क्या करेगी ? डीप इम्पैक्ट और आर्मागेडान की तरह इन धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पर परमाणु विस्फोट ?
धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पर परमाणु विस्फोट सही उपाय नही है, इससे पृथ्वी पर संकट मे वृद्धि हो सकती है। दूसरे धूमकेतु/क्षुद्रग्रह पर गहरा गढ्ढा खोद कर परमाणु बम लगाना व्यवहारिक नही है।
एक व्यवहारिक उपाय है, विशालकाय अंतरिक्षयान द्वारा धूमकेतु/क्षुद्रग्रह को खिंच कर उसके पथ से विचलीत कर देना। उपरोक्त चित्र इसी उपाय को दर्शा रहा है।
इस उपाय के जनक नासा के जानसन अंतरिक्ष केंद्र के एडवर्ड लु तथा स्टेनली लव है। उनके अनुसार एक 20 टन द्रव्यमान का परमाणु विद्युत चालित यान एक 200 मीटर व्यास के क्षुद्र ग्रह को उसके पथ से विचलित करने मे सक्षम है। करना कुछ नही है, बस उस क्षुद्रग्रह के आसपास मंडराना है, बाकि कार्य उस यान और क्षुद्रग्रह के मध्य गुरुत्वाकर्षण कर देगा। इस तकनिक मे अंतरिक्ष यान इस क्षुद्रग्रह के पास जाकर आयन ड्राइव(ion drive) के प्रयोग से क्षुद्रग्रह की सतह से दूर जायेगा। इस सतत प्रणोद तथा क्षुद्रग्रह और अंतरिक्ष यान के मध्य गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से क्षुद्रग्रह खिंचा आयेगा और पृथ्वी से टकराव के पथ से हट जायेगा।
यह विज्ञान फतांसी के जैसा लगता है लेकिन वर्तमान मे भी आयन ड्राइव(ion drive) के प्रयोग से अंतरिक्ष यान चालित है और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से किसी भी संरचना और सतह वाले क्षुद्रग्रह/धूमकेतु के पथ को बदलने मे सक्षम है।

पृथ्वी के आकार के ग्रह की खोज!

पृथ्वी और शुक्र की तुलना मे केप्लर 20e तथा केप्लर 20f
पृथ्वी और शुक्र की तुलना मे केप्लर 20e तथा केप्लर 20f
खगोलशास्त्रीयों ने दूसरी पृथ्वी की खोज मे एक मील का पत्त्थर पा लीया है, उन्होने एक तारे की परिक्रमा करते हुये दो ग्रहों की खोज की है। और ये दोनो ग्रह पृथ्वी के आकार के है!
इन ग्रहों को केप्लर 20e तथा केप्लर 20f नाम दिया गया है। चित्र मे आप देख सकते हैं कि वे हमारे मातृ ग्रह पृथ्वी के आकार के जैसे ही है। 20e का व्यास 11,100 किमी तथा 20f का व्यास 13,200 किमी है। तुलना के लिए पृथ्वी का व्यास 12,760 किमी है। ये दोनो ग्रह सौर मंडल के बाहर खोजे गये सबसे छोटे ग्रह है। इससे पहले पाया गया सबसे छोटा ग्रह केप्लर 10b था जोकि पृथ्वी से 40% ज्यादा बड़ा था।
लेकिन यह स्पष्ट कर दें कि ये दोनो ग्रह पृथ्वी के आकार के हैं लेकिन पृथ्वी के जैसे नही है। इनका मातृ तारा केप्लर 20 हमारे सूर्य के जैसा है, लेकिन थोड़ा छोटा और थोड़ा ठंडा है। यह तारा हमसे 950 प्रकाशवर्ष दूर है। लेकिन ये दोनो ग्रह केप्लर 20 की परिक्रमा पृथ्वी और सूर्य की तुलना मे समीप से करते है। इनकी कक्षा अपने मातृ तारे से 76 लाख किमी तथा 166 लाख किमी है। यह कक्षा अपने मातृ तारे के इतने समीप है कि इन ग्रहो की सतह का तापमान क्रमशः 760 डीग्री सेल्सीयस तथा 430 डीग्री सेल्सीयस तक पहुंच जाता है। इनमे से ठंडे ग्रह केप्लर 20f पर भी यह तापमान टीन या जस्ते को पिघला देने के लिये पर्याप्त है।
इन ग्रहों की यात्रा के लिये सूटकेश पैक करना अभी जल्दबाजी होगी, हालांकि राकेट से इन तक जाने के लिये अभी लाखों वर्ष लग जायेंगे। हम अभी इन ग्रहो का द्रव्यमान नही जानते है। लेकिन इन ग्रहो के आकार के कारण इनका द्रव्यमान पृथ्वी के तुल्य ही होगा।
यह प्रमाणित करता है कि केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला अंतरिक्ष मे पृथ्वी के जैसे ग्रहो की खोज मे सक्षम है। यह अभियान सही दिशा मे प्रगतिशील है।
यह यह भी दर्शाता है कि हमारा सौर मंडल अपने आप मे अकेला नही है। हम ऐसे कई तारो को जानते है जिनके अपने ग्रह है लेकिन अब तक पाये गये सभी ग्रह महाकाय थे और उनकी खोज आसान थी। लेकिन केप्लर 20e तथा केप्लर 20f पृथ्वी के जैसे है और यह एक बड़ी खोज है।
केप्लर 20 मंडल मे तीन अतिरिक्त ग्रह भी है जोकि पृथ्वी से बड़े है, इनका नाम केप्लर 20b,c तथा d है, इनका व्यास क्रमशः 24,000,40,000 तथा 35,000 किमी है, जोकि नेपच्युन और युरेनस से कम है, इसके बावजूद ये विशालकाय ग्रह है। हम इनके द्रव्यमान को जानते है, इनका द्रव्यमान पृथ्वी से क्रमशः 8.7,16.1 तथा 20 गुणा ज्यादा है। आप इन्हे महापृथ्वी कह सकते है।
यह सभी ग्रह अपने तारे की परिक्रमा काफी समीप से करते है। इनमे से सबसे बाहरी ग्रह केप्लर 20f है लेकिन यह सारी प्रणाली तुलनात्मक रूप से बुध की कक्षा के अंदर ही है! यह प्रणाली हमारे सौर मंडल से अलग है। हमारे सौर मंडल मे कम द्रव्यमान वाले ग्रह अंदर है, तथा ज्यादा द्रव्यमान वाले ग्रह बाहर, लेकिन केप्लर 20 मे यह बारी-बारी से है, बड़ा ग्रह – छोटा ग्रह – बड़ा ग्रह – छोटा ग्रह…
हम यह सब कैसे जानते है ?
केप्लर वेधशाला अंतरिक्ष मे है, वह एक समय मे एक छोटे से हिस्से का निरीक्षण करती है। इसके दृश्य पटल मे 100,000 तारे है जिसमे केप्लर 20 भी है। जब किसी तारे की परिक्रमा करता कोई ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से जाता है, उस तारे के प्रकाश मे थोड़ी कमी आती है, इसे संक्रमण(ग्रहण) कहते है। जितना बड़ा ग्रह होगा उतना ज्यादा प्रकाश रोकेगा। प्रकाश की इस कमी को केप्लर वेधशाला पकड़ लेती है और प्रकाश मे आयी कमी की मात्रा से उसका आकार ज्ञात हो जाता है, इसी तरह से हमने इन ग्रहो का आकार ज्ञात किया है।
केप्लर20 तारा प्रणाली
केप्लर20 तारा प्रणाली
जब यह ग्रह अपने तारे की परिक्रमा करते है तब वे अपने मातृ तारे को भी अपने गुरुत्व से विचलीत करते। इस विचलन को भी उस तारे के प्रकाश से मापा जा सकता है, यह विचलन उसके प्रकाश मे आने वाले डाप्लर प्रभाव से देखा जाता है। यह डाप्लर विचलन दर्शाता है कि उस तारे पर ग्रह का गुरुत्व कितना प्रभाव डाल रहा है और यह गुरुत्व उस ग्रह के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। केप्लर 20 प्रणाली मे हम उसके विशाल ग्रहो द्वारा डाले गये गुरुत्विय प्रभाव को मापने मे सफल हो पाये है, जिससे हम केवल उसके विशाल ग्रहो का द्रव्यमान ही जानते है। लेकिन केप्लर 20e तथा 20f इतने छोटे है कि उनका गुरुत्विय प्रभाव हम मापने मे असमर्थ है।
एक और तथ्य स्पष्ट कर दें कि हम इन ग्रहो का अस्तित्व जानते है, इन ग्रहों का कोई चित्र हमारे पास नही है। प्रस्तुत चित्र कल्पना आधारित है। इन ग्रहो का अस्तित्व अप्रत्यक्ष प्रमाणो अर्थात उनके द्वारा उनके मातृ तारे पर पड़ने वाले प्रभाव से प्रमाणित है। यह विधियाँ विश्वशनिय है इसलिये हम कह सकते है कि इन ग्रहों का अस्तित्व निसंदेह है।
इन ग्रहो की खोज सही दिशा मे एक कदम है। हमारी दिशा है कि किसी तारे के गोल्डीलाक क्षेत्र मे जहां पर जल अपनी द्रव अवस्था मे रह सके पृथ्वी के आकार के चट्टानी ग्रह की खोज! आशा है कि निकट भविष्य मे ऐसा ग्रह खोज लेंगे। और यह दिन अब ज्यादा दूर नही है।

केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला: सूर्य सदृश तारे के जीवन योग्य क्षेत्र मे पृथ्वी सदृश ग्रह की खोज!

केप्लर 22 की परिक्रमा करता केप्लर 22b(कल्पना आधारित चित्र)
केप्लर 22 की परिक्रमा करता केप्लर 22b(कल्पना आधारित चित्र)
यह एक बड़ा समाचार है। अंतरिक्ष वेधशाला केप्लर ने सूर्य के जैसे तारे के जीवन योग्य क्षेत्र(गोल्डीलाक क्षेत्र) मे एक ग्रह की खोज की गयी है। और यह ग्रह पृथ्वी के जैसे भी हो सकता है।
इस तारे का नाम केप्लर 22 तथा ग्रह का नाम केप्लर 22बी रखा गया है। यह पृथ्वी से 600 प्रकाशवर्ष दूर स्थित है। केप्लर 22 तारे का द्रव्यमान सूर्य से कम है और इसका तापमान भी सूर्य की तुलना मे थोड़ा कम है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे केप्लर 22 की परिक्रमा 290 दिनो मे करता है।
हमारे सौर मंडल के बाहर ग्रह की खोज कैसे की जाती है, जानने के लिये यह लेख देखें।
290 दिनो मे अपने मातृ तारे की परिक्रमा इस ग्रह को विशेष बनाती है। इसका अर्थ यह है कि यह ग्रह अपने मातृ तारे की जीवन योग्य क्षेत्र की कक्षा मे परिक्रमा कर रहा है। इस ग्रह की अपने मातृ तारे से दूरी इतनी है कि वहाँ पर पानी द्रव अवस्था मे रह सकता है। पानी की अनुपस्थिति मे जीवन संभव हो सकता है लेकिन पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के लिए पानी आवश्यक है। पृथ्वी पर जीवन के अनुभव के कारण ऐसे ग्रहों की खोज की जाती है जिन पर पानी द्रव अवस्था मे उपस्थित हो। किसी ग्रह पर पानी की द्रव अवस्था मे उपस्थिती के लिए आवश्यक होता है कि वह ग्रह अपने मातृ तारे से सही सही दूरी पर हो, जिसे गोल्डीलाक क्षेत्र कहते है। इस दूरी से कम होने पर पानी भाप बन कर उड़ जायेगा, इससे ज्यादा होने पर वह बर्फ के रूप मे जम जायेगा।
इस ग्रह की मातृ तारे से दूरी, पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी से कम है, क्योंकि इसका एक वर्ष 290 दिन का है। लेकिन इसका मातृ तारा सूर्य की तुलना मे ठंडा है, जो इस दूरी के कम होने की परिपूर्ती कर देता है। यह स्थिति इस ग्रह को पृथ्वी के जैसे जीवनसहायक स्थितियों के सबसे बेहतर उम्मीदवार बनाती है। लेकिन क्या यह ग्रह पृथ्वी के जैसा है ?
यह कहना अभी कठीन है!
केप्लर किसी ग्रह की उपस्थिति उस ग्रह के अपने मातृ तारे पर संक्रमण द्वारा पता करता है। जब कोई ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से गुजरता है, वह उसके प्रकाश को अवरोधित करता है। जितना बड़ा ग्रह होगा, उतना ज्यादा प्रकाश अवरोधित करेगा। खगोलशास्त्रीयों ने इन आंकड़ो के द्वारा जानकारी प्राप्त की कि केप्लर 22बी पृथ्वी से 2.4 गुणा बड़ा है। हमारे पास समस्या यह है कि हम इतना ही जानते है! हम नही जानते कि यह ग्रह चट्टानी है या गैसीय! हम नही जानते कि इस ग्रह पर वातावरण है या नही ?
केप्लर 22 तथा केप्लर 22b प्रणाली की आंतरिक सौर मंडल से तुलना
केप्लर 22 तथा केप्लर 22b प्रणाली की आंतरिक सौर मंडल से तुलना
हम यह नही कह सकते कि इस ग्रह पर क्या परिस्थितियाँ हैं। उपर दिये गये चित्र से आप जान सकते हैं कि द्रव्यमान और वातावरण से बहुत अंतर आ जाता है। तकनीकी रूप से मंगल और शुक्र दोनो सूर्य के जीवन योग्य क्षेत्र मे हैं, लेकिन शुक्र का घना वातावरण उसे किसी भट्टी के जैसे गर्म कर देता है, वहीं मंगल का पतला वातावरण उसे अत्यंत शीतल कर देता है।(यदि इन दोनो ग्रहो की अदलाबदली हो जाये तो शायद सौर मंडल मे तीन ग्रहो पर जीवन होता !) केप्लर 22बी शायद स्वर्ग के जैसे हो सकता है या इसके विपरीत। यह उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर करता है, और गुरुत्वाकर्षण उसके द्रव्यमान पर निर्भर है।
यह एक समस्या है कि हमे इस ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही है। केप्लर की संक्रमण विधी से ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही किया जा सकता; द्रव्यमान की गणना के लिये उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उसके मातृ तारे पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है, जोकि एक जटिल गणना है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे की परिक्रमा के लिए 290 दिन लेता है जो इस निरीक्षण को और कठिन बनाता है। ( कोई ग्रह अपने मातृ तारे के जितना समीप होगा वह अपने मातृ तारे पर उतना ज्यादा प्रभाव डालेगा तथा उसे अपने तारे की परिक्रमा कम समय लगेगा।) इस ग्रह की खोज मे समय लगने के पीछे एक कारण यह भी था कि इसके खोजे जाने के लिये उस ग्रह का अपने तारे पर संक्रमण(ग्रहण) आवश्यक था। इसका पहला संक्रमण केप्लर के प्रक्षेपण के कुछ दिनो पश्चात हुआ था लेकिन इस ग्रह को 290 दिनो बाद दोबारा संक्रमण आवश्यक था जो यह बताये कि प्रकाश मे आयी कमी वास्तविक थी, तथा अगले 290 दिनो पश्चात एक तीसरा संक्रमण जो 290 दिनो की परिक्रमा अवधी को प्रमाणित करे।
यदि यह मान कर चले की यह ग्रह संरचना मे पृथ्वी के जैसा है, चट्टान, धातु और पानी से बना हुआ। इस स्थिति मे इस ग्रह का गुरुत्व पृथ्वी से ज्यादा होगा। इस ग्रह के धरातल पर आपका भार पृथ्वी की तुलना मे 2.4 गुणा ज्यादा होगा, अर्थात वह ग्रह पृथ्वी के जैसी संरचना रखते हुये भी पृथ्वी के जैसा नही होगा। दूसरी ओर यदि यह ग्रह हल्के तत्वों से बना है तब इसका गुरुत्व कम होगा।
लेकिन इस सब से इस तथ्य का महत्व कम नही होता कि इस ग्रह का अस्तित्व है। हमने एक ऐसा ग्रह खोजा है जिसका द्रव्यमान कम है और जीवन को संभव बनाने वाली दूरी पर अपने मातृ तारे की परिक्रमा कर रहा है। अभी तक हम जीवन योग्य दूरी पर बृहस्पति जैसे महाकाय ग्रह या अपने मातृ तारे के अत्यंत समीप कम द्रव्यमान वाले ग्रह ही खोज पा रहे थे। यह प्रथम बार है कि सही दूरी पर शायद सही द्रव्यमान वाला और शायद पृथ्वी के जैसा ग्रह खोजा गया है। हम अपने लक्ष्य के समीप और समीप होते जा रहे हैं।
वर्तमान मानव ज्ञान की सीमा के अंतर्गत अनुसार पूरी आकाशगंगा मे जीवन से भरपूर एक ही ग्रह है, पृथ्वी! लेकिन निरीक्षण बताते हैं कि ऐसे बहुत से ग्रह हो सकते है, और इन ग्रहो के कई प्रकार हो सकते है। हर दिन बीतने के साथ ऐसे ग्रह की खोज की संभावना पहले से बेहतर होते जा रही है। कुछ ही समय की बात है जब हम पृथ्वी के जैसा ही जीवन की संभावनाओं से भरपूर एक ग्रह पा लेंगे।

4 अक्तूबर 1957 : ‘स्पुतनिक’ का प्रक्षेपण

स्पुतनिक की प्रतिकृति
स्पुतनिक की प्रतिकृति
चार अक्तूबर का दिन मानव के अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास मे एक स्वर्णिम पृष्ठ है। इसी दिन चार अक्तूबर 1957 को पृथ्वी की सतह से पहली मानव-निर्मित वस्तु – रूसी उपग्रह ‘स्पुतनिक‘ अंतरिक्ष में छोड़ा गया। रूसी समाचार एजंसी, ‘टास’ के मुताबिक़ उपग्रह का वज़न क़रीब 84 किलोग्राम था और इसे पृथ्वी की निचली कक्षा मे स्थापित किया गया था।
पृथ्वी की कक्षा मे स्पुतनिक (चित्रकार की कल्पना पर आधारित)
पृथ्वी की कक्षा मे स्पुतनिक (चित्रकार की कल्पना पर आधारित)
यह मानव का पहला तकनिकी अंतरिक्ष अभियान था लेकिन इस अभियान ने उपरी वातावरण की परतों के घनत्व की गणना की। इसने वातावरण के आयनोस्फियर मे रेडीयो संकेतो के वितरण के आंकड़े जमा किये। इस उपग्रह मे उच्च दबाव मे भरी नायट्रोजन गैस से किसी उल्का की जांच का प्रथम अवसर प्रदान किया था। यदि उल्का द्वारा इस उपग्रह की टक्कर होती तो यान मे हुये छेद से हुये तापमान मे आये अंतर को पृथ्वी तक भेजा जा सकता था।
स्पुतनिक‘ को कजाकिस्तान के बैकानूर अंतरिक्ष प्रक्षेपण केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया था। इस उपग्रह ने 29000 किमी/प्रति घंटा की गति से यात्रा की थी, तथा पृथ्वी की एक परिक्रमा के लिए 96.2 मिनिट लिये थे। इस उपग्रह ने 20.005 तथा 40.002 मेगा हर्टज पर रेडीयो संकेत भेजे थे जिन्हे सारे विश्व मे शौकिया रेडीयो आपरेटरो ने भी प्राप्त किया था। पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने भी इन रेडियो तरंगों पर शोध किया। इस उपग्रह से संकेत बैटरी के समाप्त होने तक 22 दिनो तक(26 अक्टूबर 1957) प्राप्त होते रहे। ‘स्पुतनिक’ 4 जनवरी 1958 पृथ्वी के वातावरण मे गीर कर जल गया, तब तक इसने 600 लाख किमी की यात्रा कर ली थी और अपनी कक्षा मे 3 महीने रहा था।
नवंबर 1957 में रूस ने ‘स्पुतनिक-2‘ को अंतरिक्ष में भेजा। इस उपग्रह में एक कुत्ते, ‘लाइका‘, को भी भेजा गया ताकि इंसान को अंतरिक्ष में भेजने के बारे में जानकारी जुटाई जा सके। रूस और अमरीका, दोनों ने ही वर्ष 1957 में उपग्रह भेजने की योजना बनाई थी लेकिन अमरीका फरवरी 1958 में ही ये कर पाया। लेकिन अंतरिक्ष की खोज के अभियान में रूस अमरीका से आगे ही रहा। वर्ष 1961 में रूस ने विश्व के पहले व्यक्ति, अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा।

दूनिया की सैर कर लो!


क्या आपने कभी पृथ्वी की अंतरिक्ष से परिक्रमा का सपना देखा है ? सुदूर आकाश से पृथ्वी के उपर से उड़ान !
अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के अंतरिक्षयात्री रोजाना ऐसा करते है। हमारी अपनी घूर्णन करती हुयी पृथ्वी की हर तीन घंटे मे एक परिक्रमा।
प्रस्तुत वीडियो अंतरिक्ष स्टेशन से पिछले माह अगस्त 2011 मे ली गयी तस्वीरों से बनाया गया है। इस वीडियो मे आप पृथ्वी की रात के समय के अर्ध प्रकाशित गोले को देख सकते है। प्रमुख नक्षत्र भी इस वीडीयो मे पहचाने जा सकते है। पृथ्वी के वातावरण की सीमा अनेक रंगों के वलय के रूप मे दिखायी दे रही है।
इस वीडियो मे आप अनेक अद्भुत गुजरते देख सकते है, जिसमे सफेद बादल, गहरा नीला सागर, बड़े शहरो के प्रकाशित शहर, छोटे नगर और तूफ़ानी बादलो मे चमकती बिजली भी शामील है।
यह वीडियो उत्तरी प्रशांत महासागर से प्रारंभ होकर पश्चिमी उत्तर अमरीका से होते पश्चिमी दक्षिण अमरीका से अंटार्कटिका पर समाप्त होता है, जहाँ पर हम सूर्योदय होते देख सकते है।

अनंत समुद्र मे एक छोटे से द्विप पर असहाय से हम : पृथ्वी और चंद्रमा

जुनो द्वारा लिया गया पृथ्वी और चंद्रमा का चित्र
जुनो द्वारा लिया गया पृथ्वी और चंद्रमा का चित्र
सौर मंडल के सबसे बड़े गैस महाकाय ग्रह बृहस्पति की यात्रा पर निकले अंतरिक्ष यान जुनो(Juno)ने मुड़कर अपने घर पृथ्वी की ओर देखा और यह चित्र लिया। यह चित्र पृथ्वी और चंद्रमा का हैं। इस चित्र मे पृथ्वी का नीला रंग स्पष्ट है। जब यह चित्र लिया तब जुनो पृथ्वी से 60 लाख किमी दूरी पर था।
यह चित्र हमारी पृथ्वी की बाह्य अंतरिक्ष से दिखायी देनी वाली छवि दर्शाती है तथा यह छवि हमे इस अनंत, विशाल अंतरिक्ष मे हमारा किरदार तथा स्थान दिखाती है। हम अपना एक नगण्य लेकिन खूबसूरत चित्र देखते है।
यह चित्र हमे 1990 मे कार्ल सागन द्वारा वायेजर 1 द्वारा लिये गये पृथ्वी के चित्र को दिये गये नाम Pale Blue Dot(धूंधला नीला बिंदू) की याद दिलाता है।
यह चित्र मुझे पेण्डुलम बैंड के गीत प्रेल्यूड/स्लैम की भी याद दिलाता है :
Somewhere out there in the vast nothingness of space,
Somewhere far away in space and time,
Staring upward at the gleaming stars in the obsidian sky,
We’re marooned on a small island, in an endless sea
Confined to a tiny spit of sand, unable to escape,
But tonight, on this small planet, on earth
We’re going to rock civilization…
– Lyrics from “Prelude/Slam,” Pendulum
हिन्दी भावानुवाद
कहीं पर अंतरिक्ष के विराट अंतराल मे
कहीं दूर समय और अंतराल मे
शीशे के जैसे आकाश मे चमकते तारो को घूरते हुये
अनंत समुद्र मे एक छोटे से द्विप पर असहाय से हम
एक छोटे से रेत के कण से बंधे, मुक्त होने मे असमर्थ हम
लेकिन आज रात, इस छोटे से ग्रह पर, पृथ्वी पर
सभ्यता को हिलाकर रख देंगे हम …….
कार्ल सागन के अनुसार
“हम जो कुछ भी जानते है और जिससे प्यार करते हैं, इस छोटे से बिंदू पर अस्तित्व मे है। सब कुछ….”

ये क्या जगह है दोस्तो !

मुझसे यदि यह अनुमान लगाने कहा जाता कि निचे दी गयी तस्वीर कहां की है मै निश्च्य ही मंगल ग्रह कहता। आप क्या सोचते है ?
ये क्या जगह है दोस्तो !
ये क्या जगह है दोस्तो !
भूमी का रंग, डरावना भूदृश्य , ज्वालामुखी देखने से लगता है कि समय जैसे ठहर गया है, लाखो वर्षो से कुछ भी नही बदला है…. यह मंगल ही होना चाहीये ! है ना ? नही यह पृथ्वी ही है !
यह तस्वीर अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केन्द्र के यात्रीयो द्वारा मार्च २००८ मे  लिया गया है। चित्र मे दिखाया गया प्रदेश सउदी अरब के हरात खैबर के लावा क्षेत्र है। यह एक नया ज्वालामुखीय क्षेत्र है। यहां पहला ज्वालामुखिय उत्सर्जन ५० लाख वर्ष पहले हुआ होगा लेकिन कुछ ज्वालामुखिय उत्सर्जन दो हजार वर्ष पूराने है।
यह क्षेत्र अत्यंत रूप से शुष्क है लेकिन इस तरह के ज्वालामुखी मे लावा के साथ पानी भी आता है। कुछ समय पहले यहां पर पानी अच्छी मात्रा मे रहा होगा लेकिन किसी कारण से सारा पानी कहीं चला गया ! और छोड़ गया ज्वालामुखिय चट्टाने, रेत और बालु !
बिल्कुल मंगल के जैसे ….।

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